महाकुंभ नगर, 31 जनवरी . उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से चल रहे महाकुंभ में आस्था, परंपरा और आध्यात्मिकता का भव्य संगम देखने को मिल रहा है. यह महाकुंभ दिव्य और भव्य होने के साथ-साथ सुरक्षित, डिजिटल और ग्रीन कुंभ के रूप में भी अपनी पहचान बना रहा है. वहीं, इस बार महाकुंभ में नारी सशक्तिकरण की अनूठी मिसाल भी देखने को मिल रही है. संगम तट पर रोजाना होने वाली भव्य आरती को पहली बार कन्याओं द्वारा संपन्न कराया जा रहा है.
महाकुंभ के इस ऐतिहासिक आयोजन में महिला बटुक ही डमरू और शंख बजाकर धार्मिक अनुष्ठानों का संचालन कर रही हैं. वे ही मंच पर चढ़कर आरती के पात्र को हाथ में लेकर सभी रस्में अदा कर रही हैं. यह पहली बार है जब इतने बड़े पैमाने पर होने वाली नियमित गंगा आरती में महिलाओं की इतनी बड़ी भागीदारी देखी जा रही है. इससे न केवल परंपरा को एक नया रूप मिला है, बल्कि समाज में बेटियों को लेकर सोच में भी सकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहा है.
आरती में शामिल होने वाले श्रद्धालु इस ऐतिहासिक बदलाव से बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसा दिव्य और भव्य नजारा उन्होंने पहले कभी नहीं देखा. यहां आकर ऐसा महसूस होता है मानो समूची दुनिया के मंदिर एक स्थान पर इकट्ठा हो गए हों और सभी आरतियां एक साथ संपन्न हो रही हों. श्रद्धालु इस अनूठे आयोजन को आध्यात्मिकता और नारी शक्ति का अद्भुत संगम मान रहे हैं.
महाकुंभ में इस ऐतिहासिक पहल के पीछे महिलाओं को धार्मिक अनुष्ठानों में समान अधिकार देने की भावना भी नजर आती है. आमतौर पर इस तरह के अनुष्ठानों में पुरुषों की ही भागीदारी होती थी, लेकिन इस बार महिला बटुकों को भी अवसर दिया गया है, जिससे यह आयोजन और भी विशेष बन गया है. यह पहल सामाजिक सोच में बदलाव का प्रतीक भी है, जहां बेटियों को भी वही स्थान मिल रहा है, जो अब तक केवल बेटों के लिए ही आरक्षित समझा जाता था.
महाकुंभ का यह आयोजन केवल आध्यात्मिक रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी ऐतिहासिक बन गया है. नारी सशक्तिकरण की इस मिसाल ने कुंभ की दिव्यता और भव्यता को और बढ़ा दिया है.
दीप्ति भारद्वाज ने बताया कि महिलाओं के हाथों में कुभ की आरती की जिम्मेदारी देख बहुत अच्छा लग रहा है. मैं यह पहली बार देख रही हूं कि किसी महिला को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. गुजरात के अहमदाबाद से आईं आस्था बोधानी ने बताया, “हमने यह पहली बार देखा है कि इस प्रकार से बटुक कन्याएं आरती करती हैं. यह सचमुच बहुत अद्भुत है. मुझे सनातन संस्कृति पर गर्व हो रहा है.”
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पीएसएम/