नई दिल्ली, 31 जनवरी . यातायात से रोजाना निकलने वाले पीएम 2.5 कणों की थोड़ी मात्रा भी लीवर को नुकसान पहुंचा सकती है और फैटी लीवर रोग के खतरे को बढ़ा सकती है. यह जानकारी शुक्रवार को एक नए अध्ययन में सामने आई.
शोध में पाया गया कि मात्र 10 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 कण लीवर की सेहत पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं.
फैटी लीवर, जिसे हेपेटिक स्टेटोसिस भी कहा जाता है, दुनियाभर में एक आम समस्या बन गई है. यह तब होता है, जब लीवर की कोशिकाओं में बहुत अधिक वसा जमा हो जाती है. पहले के शोध बताते हैं कि खराब खान-पान, व्यायाम की कमी और शराब के अधिक सेवन से यह समस्या होती है. लेकिन अब नए शोध से पता चला है कि वायु प्रदूषण भी इसका एक बड़ा कारण हो सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी के प्रोफेसर हुई चेन के अनुसार, लोग वायु प्रदूषण को केवल फेफड़ों के लिए हानिकारक मानते हैं, लेकिन इसका असर लीवर पर भी पड़ता है. जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं, तो बहुत छोटे पीएम 2.5 कण हमारे फेफड़ों से होते हुए खून में पहुंच जाते हैं. चूंकि लीवर का काम खून को साफ करना होता है, इसलिए यह इन जहरीले तत्वों को जमा कर लेता है. इनमें आर्सेनिक, सीसा, निकल और जस्ता जैसी भारी धातुएं शामिल होती हैं.
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चूहों को प्रतिदिन 10 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 कणों के संपर्क में रखा और 4, 8 और 12 सप्ताह के बाद उनके लीवर में बदलाव को देखा. पहले 4 से 8 सप्ताह तक कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा, लेकिन 12 सप्ताह बाद लीवर की कार्यप्रणाली में गड़बड़ी शुरू हो गई. शोधकर्ताओं ने पाया कि लीवर में 64 कार्यात्मक प्रोटीन प्रभावित हुए, जिनमें से कई फैटी लीवर और प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी से जुड़े थे.
वायु प्रदूषण के कारण लीवर में अधिक प्रतिरक्षा कोशिकाएं जमा हो गईं, जिससे सूजन बढ़ी और अधिक निशान ऊतक बनने लगे. इसके अलावा, लीवर में ट्राइग्लिसराइड्स, डायसिलग्लिसरोल्स और सेरामाइड्स जैसे हानिकारक वसा की मात्रा भी बढ़ गई, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं.
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