नई दिल्ली, 25 जनवरी . पुणे में 73 लोगों को प्रभावित करने वाला गुलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) एक खतरनाक तंत्रिका रोग है, जिसे विशेषज्ञों ने जानलेवा बताया है.
जीबीएस आमतौर पर एक बैक्टीरियल या वायरल संक्रमण के बाद होता है. इसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से तंत्रिका पर हमला कर देती है, जिससे कमजोरी, लकवा या कभी-कभी मौत भी हो सकती है.
राज्य स्वास्थ्य विभाग के अनुसार, पुणे में जीबीएस के कुल 73 मामलों की पुष्टि हुई है, जिनमें 47 पुरुष और 26 महिलाएं शामिल हैं. इनमें से 14 मरीज वेंटिलेटर पर हैं.
एक 64 वर्षीय महिला मरीज, जो पिंपरी के यशवंतराव चव्हाण मेमोरियल अस्पताल में इलाज करवा रही थी, जीबीएस के कारण दम तोड़ चुकी हैं.
जीबीएस के बारे में बात करते हुए एम्स की न्यूरोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया, जीबीएस अचानक शुरू होता है और अक्सर किसी संक्रमण के बाद होता है. यह आमतौर पर कैम्पिलोबैक्टर के कारण होने वाले गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण के बाद देखा जाता है.”
जीबीएस में पैर से लकवा शुरू होकर सांस की समस्या तक पहुंच सकता है. कई मरीज वेंटिलेटर पर चले जाते हैं.
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने 21 जीबीएस नमूनों में नोरोवायरस और कैम्पिलोबैक्टर जेजूनी बैक्टीरिया पाया. ये दोनों ही दस्त, उल्टी और पेट की गड़बड़ी जैसे लक्षण पैदा करते हैं. पुणे के कई मरीजों में जीबीएस से पहले ये लक्षण दिखे थे.
शहर के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंशु रोहतगी ने से बताया, “नोरोवायरस जीबीएस को ट्रिगर कर सकता है. यह वायरस गैस्ट्रोएंटेराइटिस (पेट की खराबी) के मामलों का मुख्य कारण है. किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है और यह जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है.
जीबीएस का कोई स्थायी इलाज नहीं है. इसके लक्षण जैसे पैरों में कमजोरी, झनझनाहट या सुन्नपन हाथों तक फैल सकते हैं. लक्षण हफ्तों तक रह सकते हैं, लेकिन ज्यादातर मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं. हालांकि, कुछ मामलों में लंबे समय तक असर रह सकता है.
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