नई दिल्ली, 30 दिसंबर . अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक नेत्र रोग विशेषज्ञ ने कहा कि 40 साल से ऊपर के लोगों को ग्लूकोमा से दृष्टिहीनता को रोकने के लिए नियमित रूप से आंखों की जांच करानी चाहिए. ग्लूकोमा एक ऐसी बीमारी है जो आंखों की रोशनी को धीरे-धीरे खत्म कर सकती है और अंधापन का कारण बन सकती है.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर नेत्र विज्ञान के प्रोफेसर और आरपी सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज में ग्लूकोमा सेवाओं के प्रमुख डॉ. तनुज दादा ने कहा कि अगर ग्लूकोमा का समय पर पता नहीं चले तो यह आंखों की रोशनी की हानि और अंधापन का कारण बन सकता है.
डॉ. तनुज दादा ने कहा, “ग्लूकोमा को ‘दृष्टि का मूक चोर’ कहा जाता है, क्योंकि अगर इसका इलाज न किया जाए, तो यह स्थायी दृष्टि हानि का कारण बन सकता है. अगर आपकी उम्र 40 साल से अधिक है और आपको किसी प्रकार के लक्षण नहीं हैं, तो आपको हर दो साल में आंखों की जांच जरूर करानी चाहिए.”
उन्होंने बताया कि ग्लूकोमा, जिसे काला मोतिया भी कहा जाता है, आंख की ऑप्टिक तंत्रिका की बीमारी है, जो दुनिया में स्थायी अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है.
विशेषज्ञ ने कहा, “ग्लूकोमा को ‘दृष्टि का मूक चोर’ कहा जाता है, क्योंकि इस बीमारी में अक्सर कोई लक्षण नहीं दिखते हैं.”
ग्लूकोमा होने का खतरा जिन लोगों को है, उनमें “मधुमेह, उच्च रक्तचाप और जिनके परिवार में कोई व्यक्ति ग्लूकोमा से पीड़ित हो” शामिल हैं.
नेत्र रोग विशेषज्ञ ने कहा, “जो लोग स्टेरॉयड, क्रीम, आई ड्रॉप, टैबलेट या इन्हेलर का इस्तेमाल कर रहे हैं, या जिनकी आंखों में कोई चोट लगी हो, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा ज्यादा है.”
विभिन्न अध्ययनों, रिपोर्ट और अस्पतालों के आंकड़ों के अनुसार, जागरूकता की कमी और समय पर पहचान न हो पाने की वजह से भारत में ग्लूकोमा के कारण अंधापन की समस्या बढ़ रही है.
भारत में कई मामलों में, लगभग 90 प्रतिशत समय बीमारी का पता ही नहीं चल पाता है.
उन्होंने जीवन भर आंखों की सुरक्षा के लिए नियमित जांच, जल्दी पहचान और सही इलाज के महत्व पर जोर दिया.
दादा ने कहा, “जो लोग खतरे में हैं, उन्हें ग्लूकोमा से बचने के लिए हर साल आंखों की जांच करवानी चाहिए. अगर आपकी उम्र 60 साल से ज्यादा है, तो यह जांच जरूर करवानी चाहिए. इस बीमारी से अंधेपन को रोकने के लिए यह बहुत जरूरी है.”
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एसएचके/एएस