शिमला, 20 दिसंबर . उत्तराखंड में शूट की गई फिल्म ‘भेड़िया धसान’ का प्रीमियर तिरुवनंतपुरम में आयोजित प्रतिष्ठित 29वें केरल अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में किया गया. इस फिल्म का संगीत शिमला के स्वतंत्र संगीतकार तेजस्वी लोहुमी ने तैयार किया है.
भरत सिंह परिहार द्वारा निर्देशित इस फिल्म को फिल्म निर्माता सलीम अहमद की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा “इंडियन सिनेमा नाउ” के तहत महोत्सव के लिए चुना गया था, जिसमें फिल्म निर्माता लिजिन जोस, शालिनी उषा देवी, विपिन एटली और फिल्म समीक्षक आदित्य श्रीकृष्ण शामिल थे.
कुल मिलाकर, इंडियन सिनेमा नाउ सेक्शन के तहत महोत्सव के लिए सात फिल्मों का चयन किया गया.
यह फिल्म 14 और 16 दिसंबर को दिखाई गई और 19 दिसंबर को अंतिम स्क्रीनिंग की गई.
फिल्म की ज्यादातर शूटिंग उत्तराखंड के हिल स्टेशन मुक्तेश्वर में हुई है और इसके अधिकांश अभिनेता और क्रू मेंबर भी इसी क्षेत्र से हैं.
फिल्म का पूरा संगीत तेजस्वी लोहुमी ने हिमाचल प्रदेश के शिमला स्थित अपने स्टूडियो में तैयार और रिकॉर्ड किया है.
फिल्म हिमालय के एक गांव में जीवन को दर्शाती है, जो जेनेरेशन गैप की चुनौतियों पर केंद्रित है.
यह मानसिकता और अत्यधिक गरीबी से प्रभावित मानव व्यवहार के अंधेरे पहलुओं पर प्रकाश डालती है.
इस फिल्म में पुरानी पीढ़ी द्वारा बदलाव को स्वीकार करने से इनकार करना और उसके परिणामस्वरूप होने वाले टकराव को एक युवा व्यक्ति की कहानी के माध्यम से स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है.
बेहतर भविष्य की तलाश में एक बड़े शहर में पलायन करने के बाद, युवा अपनी मां की मृत्यु के बाद अपने गांव लौटता है. वह खुद को गांव की रूढ़िवादी सामाजिक संरचना में फंसा हुआ पाता है.
नौकरी के अवसरों की कमी, अधिकारियों और स्थानीय पंचायत प्रधान के भ्रष्ट गठजोड़ द्वारा कमज़ोर ग्रामीणों का शोषण, और कठोर लेकिन भेदभावपूर्ण सामाजिक मानदंड उसके लिए जीवन को एक दुःस्वप्न बना देते हैं.
संघर्ष करते हुए, वह दमनकारी वातावरण से धीरे-धीरे निराश हो जाता है.
गांव के लोगों की मानसिकता से निराश होकर, वह अपने पिता को अपने साथ शहर में ले जाने की हर संभव कोशिश करता है, लेकिन बूढ़ा व्यक्ति मानने से इनकार कर देता है.
निर्देशक भरत सिंह परिहार के मुताबिक, “हमारा उद्देश्य एक भारतीय हिमालयी गांव के सार को पकड़ना था, जहां बदलाव अभी भी अस्वीकार्य है. इस प्रक्रिया में फिल्म गरीबी से त्रस्त गांवों की कठोर वास्तविकताओं और उनमें व्याप्त अंधकारमय भावनाओं को उजागर करती है.”
संगीत के बारे में बात करते हुए तेजस्वी ने को बताया, “मैंने सेलो, बांसुरी, गिटार और नगाड़ा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ-साथ डिजेरिडू, हैंडपैन, कलिम्बा और जेम्बे जैसे कई अपरंपरागत वाद्ययंत्रों का इस्तेमाल किया है. ये वाद्ययंत्र असामान्य हैं, लेकिन हिमालय के सांस्कृतिक और पर्यावरणीय परिदृश्य के साथ घुलमिल जाते हैं.”
उन्होंने कहा, “मैंने वाद्ययंत्रों का अलग तरह से इस्तेमाल करने की कोशिश की है. क्योंकि निर्देशक दृश्य कथा के पूरक के रूप में एक अलग ध्वनि परिदृश्य चाहते थे.”
–
एमकेएस/केआर