पटना, 18 दिसंबर . पूर्णिया से निर्दलीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने भाजपा पर मुद्दों के राजनीतिकरण का आरोप लगाया. उन्होंने अमित शाह पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह लोग कब्रिस्तान, शमशान, ईद , बकरीद , जिन्ना और पाकिस्तान जैसे मुद्दों को लेकर राजनीतिक लाभ अर्जित करने का प्रयास कर रहे हैं.
उन्होंने से बातचीत में कहा, “हर चुनाव के वक्त यह मुद्दे फिर से उठाए जाते हैं, ताकि लोगों के बीच नफरत फैलाई जा सके और एक विभाजन हो, ताकि वोट बैंक की राजनीति हो सके.”
उन्होंने कहा, “आप देखिए, जब बीजेपी के नेता हरियाणा जाते हैं तो जाट को, पंजाब जाते हैं तो सिख को, महाराष्ट्र जाते हैं तो मराठी को, यूपी और बिहार जाते हैं तो यादव को, इन सबको यह अपने हिसाब से ढालने की कोशिश करते हैं. हर राज्य में अलग-अलग मुद्दे खड़े किए जाते हैं, ताकि हर जगह धर्म और जाति के नाम पर चुनावी फायदे की राजनीति हो. यह जो काम है, यह किसी भी देश या समाज में स्थिरता नहीं ला सकता है, बल्कि यह समाज को और अधिक विभाजित करता है.”
उन्होंने कहा, “अब आप यह सोचिए कि हमारे संविधान में, जो हमने एक देश के तौर पर एकता और विकास के लिए बनाया था, उसमें धर्म या जाति पर कोई बात नहीं है. अगर आप अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देशों में जाएंगे तो वहां पर किसी भी धर्म पर विवाद नहीं होता. वहां विकास, शिक्षा, रोजगार पर चर्चा होती है. लेकिन, यहां पर हमारे नेताओं का ध्यान केवल धर्म, जाति और नफरत फैलाने पर है. ऐसे में हम कैसे आगे बढ़ सकते हैं?”
उन्होंने आगे कहा, “अब जब बात आती है आरक्षण की, तो मैं यह कहना चाहता हूं कि जो 67 फीसदी आरक्षण की बात हो रही है, वह पूरी तरह से सही है. हम यह नहीं कह रहे कि मुसलमानों को आरक्षण चाहिए, बल्कि हम यह कह रहे हैं कि दलितों, आदिवासियों, और अन्य पिछड़े वर्गों के अधिकारों को सम्मान देना चाहिए.”
उन्होंने कहा, “साथ ही, आप देखिए, जब आप किसी के विकास की बात करते हैं तो आप जाति जनगणना की बात क्यों नहीं करते? आपको यह देखना चाहिए कि किस वर्ग को ज्यादा सुविधाएं चाहिए. किसानों का मुद्दा, बेरोजगारी का मुद्दा, यह सब छुपा दिया जाता है. चुनावी समय में सिर्फ ऐसे मुद्दे उठाए जाते हैं जो समाज में घृणा फैलाते हैं. असल मुद्दों पर कभी बात नहीं होती.”
उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका पर अपनी बात रखते हुए कहा, “चुनाव आयोग की भूमिका भी हमेशा संदिग्ध रही है. जब चुनाव आयोग को शक्ति देने की बात होती है, तो उसका दुरुपयोग हो सकता है. आप इसे सख्त करना चाहते हैं, तो ऐसा नहीं हो सकता कि सत्ता और चुनाव आयोग का गठजोड़ हो जाए. जनता को यह तय करने देना चाहिए कि वह किसे चुने. चुनाव आयोग को एक ऐसे तरीके से काम करने देना चाहिए कि जनता का विश्वास बना रहे, ताकि चुनाव सही और निष्पक्ष हो.”
उन्होंने कहा, “अब बीजेपी और अमित शाह की सरकार की जो नीतियां हैं, उन पर यह कहना चाहता हूं कि यह सिर्फ अपने राजनीतिक फायदे के लिए चल रही हैं.”
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एसएचके/केआर