मुंबई, 10 दिसंबर . गंभीर मुद्दों पर फिल्म बनाने के लिए मशहूर इंडस्ट्री के सफल निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री सोशल मीडिया पर फैंस के साथ अक्सर एक से बढ़कर एक पोस्ट शेयर करते रहते हैं. निर्देशक ने लेटेस्ट पोस्ट में बताया कि ‘घोस्ट लाइट’ किसे कहते हैं.
इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट शेयर कर ‘द कश्मीर फाइल्स’ के निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने लिखा, “फिल्म के सेट पर जब थिएटर की तरह सभी लाइट्स बंद हो जाती हैं, तब भी कभी पूरा अंधेरा नहीं होता. यहां तक कि जब सेट पर कोई नहीं होता, तब भी एक छोटी सर्विस लाइट हमेशा जलती रहती है. इसे ‘घोस्ट लाइट’ कहते हैं.”
‘द दिल्ली फाइल्स’ लाने की तैयारी में जुटे अग्निहोत्री ने ‘घोस्ट लाइट’ का अर्थ भी बताया. उन्होंने आगे लिखा, “कभी-कभी हमारे आस-पास की दुनिया खाली होती है. यह शो के लिए सही समय नहीं है. शायद अभी दर्शक नहीं हैं. लेकिन किसी कलाकार ने घोस्ट लाइट जलाकर छोड़ दी है. हालांकि, यह असली रोशनी नहीं है, लेकिन यह उम्मीद देती है कि हम वापस लौट आएंगे, हम लौट आएंगे.
“ऐसी घोस्ट लाइट अस्थायी होती है. भले ही असली कलाकार अभी स्टूडियो में न हों, लेकिन उनकी आत्मा, उनकी प्रेरणा, उनकी रचनात्मकता जल्द ही वहां पर वापस आ जाएगी और इसके बाद फिर से पूरी रोशनी चालू हो जाएगी. एक बार फिर कोई कहेगा, ‘लाइट्स, कैमरा, एक्शन और फिर से शो शुरू हो जाएगा.”
सोशल मीडिया पर खासा पकड़ रखने वाले अग्निहोत्री ने सर्दियों के बीच हाल ही में अपने एक पोस्ट के द्वारा बताया था कि एलर्जी क्या है और इसे कैसे दूर करते हैं. ‘द दिल्ली फाइल्स’ की शूटिंग में व्यस्त अग्निहोत्री ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट शेयर कर बताया था, “दशकों से मैं सुबह होने वाली एलर्जी से परेशान था. इसमें छींक आना, नाक बहना और आंखों में खुजली होना शामिल है. डॉक्टरों ने बताया कि मुंबई में यह आम बात है.”
उन्होंने आगे कहा, “फिर, हिमालय में मेरी मुलाकात एक व्यक्ति से हुई, जिसने मुझे सिर्फ ठंडे पानी से नहाने की सलाह दी. मैंने इसे आजमाया और पिछले तीन सालों से मुझे छींक नहीं आई. मैं इसके पीछे की साइंस को नहीं जानता, लेकिन यह मेरे लिए काम कर गया. इस अनुभव ने मुझे कई विशेषज्ञों के साथ रिसर्च और बातचीत करने के लिए प्रेरित किया. मैंने पाया कि कई एलर्जी इसलिए होती हैं, क्योंकि हमने खुद को प्रकृति से अलग कर लिया है. हम जो खाते हैं, उससे जुड़ते नहीं. हम अपना खाना नहीं पकाते, धोते या काटते नहीं हैं और हम शायद ही कभी उसे ठीक से सूंघते या चबाते हैं. हमने भोजन को सही से खाना छोड़ दिया है. हम बेमौसम कोई भी सब्जी खाते हैं, यह भूल जाते हैं कि सब्जियां मौसमी होती हैं.”
उन्होंने कहा, “हम पर्यावरण से जुड़ने के लिए कुछ नहीं करते. प्रकृति से हमारा अलगाव प्राकृतिक आपदा को आमंत्रित करता है. जब हम दुनिया के साथ अपना रिश्ता बदलते हैं, तो दुनिया भी हमारे साथ अपना रिश्ता बदल देती है.”
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एमटी/एएस