प्रोबा 3 उपग्रह से कृत्रिम सूर्यग्रहण की स्‍थि‍त‍ि पैदा कर वैज्ञानिकों को अनुसंधान के मिलेंगे अधिक अवसर : आरसी कपूर

नई दिल्ली, 3 दिसंबर . भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) पीएसएलवी-सी59/एक्सएल के जरिए 4 दिसंबर को प्रोबा 3 सेटेलाइट को शाम 4:06 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लाॅन्‍च करेगा. इस मिशन के तहत उपग्रह प्रक्षेपण यान उपग्रहों को अत्यधिक दीर्घवृत्ताकार कक्षा में ले जाएगा. प्रोबा 3 मिशन यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) का एक “इन-ऑर्बिट डेमोस्ट्रेशन (आईओडी) मिशन” है.

इस मिशन की जानकारी देते हुए इसरो के सेवानिवृत वैज्ञानिक आरसी कपूर ने बताया, “प्रोबा 3 एक मिशन है, इसका उद्देश्य ऑन-बोर्ड ऑटोनॉमी पर आधारित अध्ययन करना है. यह परियोजना यूरोप में भी प्रचलित है, जिसे इसरो द्वारा पीएसएलवी एक्सेल रॉकेट के जरिए अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. प्रोबा 1 का पहला संस्करण 2001 में इसरो द्वारा लॉन्च किया गया था, जो पृथ्वी पर आधारित ऑब्जर्वेशन मिशन था. प्रोबा 2 सूर्य के अध्ययन के लिए छोड़ा गया था. वह भी इसरो ने छोड़ा था.अब, प्रोबा 3 को अंतरिक्ष में नई तकनीक का प्रदर्शन करने के लिए इसरो को एक और अवसर मिला है. यह मिशन सूर्य के कोरोना के अध्ययन के लिए भी महत्वपूर्ण है.”

उन्होंने कहा, “प्रोबा 3 में भेजे जाने वाले सैटेलाइट्स आपस में जुड़े हुए होंगे, जिन्हें अंतरिक्ष में अलग किया जाएगा. इसमें दो मुख्य हिस्से होंगे. एक हिस्सा प्रयोगात्मक होगा और दूसरा हिस्सा परिस्थिति उत्पन्न करने का कार्य करेगा. प्रयोगात्मक हिस्से में एक कोरोना ग्राफ होगा, जो सूर्य के कोरोना की तस्वीरें लेगा. दूसरा हिस्सा एक आकल्टर डिस्क होगा, जो करीब 1.4 मीटर आकार का है और 150 मीटर की दूरी से कोरोना ग्राफ के लेंस पर 8 सेंटीमीटर की छवि बनाएगा.”

उन्होंने कहा, “यह तकनीकी प्रयोग एक कृत्रिम पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति उत्पन्न करेगा, जिससे वैज्ञानिक सूर्य के बाहरी, अत्यधिक गर्म गैसीय वातावरण का अध्ययन कर सकेंगे. सामान्यतः, सूर्य ग्रहण की स्थिति में ही वैज्ञानिक इस वातावरण का अध्ययन कर पाते थे, जो केवल कुछ मिनटों के लिए होता था. इस दौरान, मौसम की अनिश्चितताओं जैसे बारिश का सामना करना पड़ता था, जो अक्सर अध्ययन में बाधा डालता था. प्रोबा 3 के जरिए, हमें सूर्य ग्रहण जैसी स्थिति छह घंटे तक हर ऑर्बिट के दौरान मिलेगी, जो एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि है. इसे एक प्रकार से चमत्कारिक तकनीकी प्रगति माना जा सकता है.”

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