इतिहास की किताबों में चंद नायकों का ‘एकाधिकार’ खत्म करने का समय आ गया है : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 1 दिसंबर . उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को देश के नायकों के बारे में सही जानकारी देने और इतिहास में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि इतिहास की किताबों में कुछ लोगों को ही प्रमुख दिखाया गया है, जबकि देश की स्वतंत्रता में कई लोगों का योगदान था. अब समय आ गया है कि इस गलतफहमी को दूर किया जाए.

उपराष्ट्रपति ने यहां भारत मंडपम में राजा महेंद्र प्रताप की 138वीं जयंती के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि हमारे इतिहास के साथ छेड़छाड़ की गई है, जिसके कारण कुछ लोगों के बारे में यह दिखाया गया है कि उन्होंने ही हमें आजादी दिलाई.

उन्होंने कहा, “यह हमारी अंतरात्मा में गहरी पीड़ा है. यह हमारी दिल और आत्मा पर एक बोझ बन चुका है. मुझे यकीन है कि हमें इसमें बड़ा बदलाव लाना होगा. साल 1915 में पहली ‘भारत सरकार’ के गठन से बेहतर कोई क्षण नहीं था.” राजा महेंद्र प्रताप को उन्होंने एक नैसर्गिक राजनयिक, कुशल नेता, दूरदर्शी और राष्ट्रवादी बताया.

उन्होंने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप ने अपने कार्यों से राष्ट्रवाद, देशभक्ति और दूरदर्शिता का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया.

देश के कुछ योग्य लोगों को उचित सम्मान और भारत रत्न देने में हुई देरी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “बी.आर. अम्बेडकर को 1990 में भारत रत्न मिला. क्यों? यह देरी क्यों हुई? इस मानसिकता को समझें… और हाल ही में, चौधरी चरण सिंह और कर्पूरी ठाकुर को भी सम्मान मिला. वे हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे.”

उन्होंने कहा, “हमने लंबे समय तक उन लोगों को नजरअंदाज किया, जो हमारे मार्गदर्शक रहे हैं. उन्होंने सचमुच देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. अब आदिवासी दिवस मनाया जाने लगा है. बिरसा मुंडा की उम्र कितनी थी? खैर, कभी नहीं से देर भली.”

कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं को पर्याप्त महत्व नहीं दिए जाने पर सवाल उठाते हुए धनखड़ ने कहा, “कोटरा यात्रा के दौरान, उदयपुर में हाल ही में बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती मनाई गई. मैंने अपने दोस्तों से 1913 के मंगर हिल के दिल दहला देने वाले कायरतापूर्ण घटनाक्रम के बारे में बात की. जलियांवाला बाग से बहुत पहले, 1913 में 1,507 आदिवासी लोग अंग्रेजों की गोलियों का शिकार बने थे. यह कितना बड़ा नरसंहार था! कितना घिनौना कृत्य था! लेकिन इतिहास ने इसे ज्यादा महत्व नहीं दिया.”

उपराष्ट्रपति ने 2047 तक विकसित भारत बनाने के लिए किसानों की भलाई पर जोर दिया और कहा, “किसानों पर ध्यान दिए बगैर हम विकसित राष्ट्र नहीं बन सकते.”

एसएचके/एकेजे