नई दिल्ली, 24 नवंबर . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को प्रवासी भारतीयों के अपनी जड़ों से गहरे जुड़ाव को रेखांकित करते हुए कहा कि विदेशों में रहने वाले भारतीय समुदायों की रगों में “भारतीयता” बसती है.
रेडियो कार्यक्रम मन की बात के 116वें संस्करण में पीएम मोदी ने गयाना की अपनी यात्रा, ओमान में बसे भारतीयों और स्लोवाक भाषा को लेकर दिलचस्प वाकये सुनाए. उन्होंने श्रोताओं से अपील की कि वो विदेश में रह रहे भारतीयों से जुड़ी कोई ऐसी कहानी बताना चाहते हैं जिसमें विरासत की बात हो तो नमो ऐप पर साझा करें.
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, परसों रात ही मैं दक्षिण अमेरिका के देश गयाना से लौटा हूं. भारत से हजारों किलोमीटर दूर, गयाना में भी, एक ‘मिनी भारत’ बसता है. आज से लगभग 180 वर्ष पहले, गयाना में भारत के लोगों को, खेतों में मजदूरी के लिए, दूसरे कामों के लिए, ले जाया गया था. आज गयाना में भारतीय मूल के लोग राजनीति, व्यापार, शिक्षा और संस्कृति के हर क्षेत्र में गयाना का नेतृत्व कर रहे हैं. गयाना के राष्ट्रपति डॉ. इरफान अली भी भारतीय मूल के हैं, जो, अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं. जब मैं गयाना में था, तभी, मेरे मन में एक विचार आया था – जो मैं ‘मन की बात’ में आपसे शेयर कर रहा हूं.
गयाना की तरह ही दुनिया के दर्जनों देशों में लाखों की संख्या में भारतीय हैं. दशकों पहले की 200-300 साल पहले की उनके पूर्वजों की अपनी कहानियां हैं. क्या आप ऐसी कहानियों को खोज सकते हैं कि किस तरह भारतीय प्रवासियों ने अलग-अलग देशों में अपनी पहचान बनाई! कैसे उन्होंने वहां की आजादी की लड़ाई के अंदर हिस्सा लिया! कैसे उन्होंने अपनी भारतीय विरासत को जीवित रखा? मैं चाहता हूं कि आप ऐसी सच्ची कहानियों को खोजें, और मेरे साथ शेयर करें.आप इन कहानियों को नमो ऐप पर या माय जीओवी पर हैशटैग इंडियन डायस्पोरा स्टोरीज के साथ भी शेयर कर सकते हैं. साथियों, आपको ओमान में चल रहा एक एक्सट्राऑर्डिनरी प्रोजेक्ट भी बहुत दिलचस्प लगेगा. अनेकों भारतीय परिवार कई शताब्दियों से ओमान में रह रहे हैं. इनमें से ज्यादातर गुजरात के कच्छ से जाकर बसे हैं. इन लोगों ने व्यापार के महत्वपूर्ण लिंक तैयार किए थे. आज भी उनके पास ओमानी नागरिकता है, लेकिन भारतीयता उनकी रग-रग में बसी है. ओमान में भारतीय दूतावास और नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया के सहयोग से एक टीम ने इन परिवारों की हिस्ट्री को प्रिजर्व करने का काम शुरू किया है. इस अभियान के तहत अब तक हजारों डॉक्युमेंट्स जुटाए जा चुके हैं. इनमें डायरी, अकाउंट बुक, लेजर्स, लेटर्स और टेलीग्राम शामिल हैं. इनमें से कुछ दस्तावेज तो सन् 1838 के भी हैं. ये दस्तावेज, भावनाओं से भरे हुए हैं. बरसों पहले जब वो ओमान पहुंचे, तो उन्होंने किस प्रकार का जीवन जिया, किस तरह के सुख-दुख का सामना किया, और, ओमान के लोगों के साथ उनके संबंध कैसे आगे बढ़े – ये सब कुछ इन दस्तावेजों का हिस्सा है. ‘ओरल हिस्ट्री प्रोजेक्ट’ ये भी इस मिशन का एक महत्वपूर्ण आधार है. इस मिशन में वहां के वरिष्ठ लोगों ने अपने अनुभव साझा किए हैं. लोगों ने वहाँ अपने रहन-सहन से जुड़ी बातों को विस्तार से बताया है.साथियों ऐसा ही एक ‘ओरल हिस्ट्री प्रोजेक्ट’ भारत में भी हो रहा है. इस प्रोजेक्ट के तहत इतिहास प्रेमी देश के विभाजन के कालखंड में पीड़ितों के अनुभवों का संग्रह कर रहें हैं. अब देश में ऐसे लोगों की संख्या कम ही बची है, जिन्होंने, विभाजन की विभीषिका को देखा है. ऐसे में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है.पीएम मोदी ने आगे कहा, जो देश, जो स्थान, अपने इतिहास को संजोकर रखता है, उसका भविष्य भी सुरक्षित रहता है. इसी सोच के साथ एक प्रयास हुआ है जिसमें गांवों के इतिहास को संजोने वाली एक डायरेक्ट्री बनाई है. समुद्री यात्रा के भारत के पुरातन सामर्थ्य से जुड़े साक्ष्यों को सहेजने का भी अभियान देश में चल रहा है. इसी कड़ी में, लोथल में, एक बहुत बड़ा म्यूजियम भी बनाया जा रहा है, इसके अलावा, आपके संज्ञान में कोई मैनुस्क्रिप्ट हो, कोई ऐतिहासिक दस्तावेज हो, कोई हस्तलिखित प्रति हो तो उसे भी आप, नेशनल अर्काइव्स ऑफ इंडिया की मदद से सहेज सकते हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने इसके बाद स्लोवाक लैंग्वेज को लेकर बात रखा. बोले, मुझे स्लोवाकिया में हो रहे ऐसे ही एक और प्रयास के बारे में पता चला है जो हमारी संस्कृति को संरक्षित करने और उसे आगे बढ़ाने से जुड़ा है. यहां पहली बार स्लोवाक लैंग्वेज में हमारे उपनिषदों का अनुवाद किया गया है. इन प्रयासों से भारतीय संस्कृति के वैश्विक प्रभाव का भी पता चलता है. हम सभी के लिए ये गर्व की बात है कि दुनिया-भर में ऐसे करोड़ों लोग हैं, जिनके हृदय में, भारत बसता है.
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केआर/