डीटीसी की महिला कर्मचारियों की मांगों के समर्थन में पुरुष कर्मचारियों का प्रदर्शन

नई दिल्ली, 17 नवंबर . दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के महिला कर्मचारियों का प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहा है. महिला कर्मचारियों के समर्थन में अब पुरुष कर्मचारी भी आ गए हैं. कर्मचारियों ने समान काम के लिए समान वेतन, पक्की नौकरी और निजीकरण की प्रक्रिया को रोकने की मांग की है.

महिला कर्मचारियों के समर्थन में डीटीसी के पुरुष कर्मचारियों ने भी रविवार को सरोजनी नगर डिपो में बैठक की. इसमें दिल्ली के विभिन्न डिपो के कर्मचारियों ने भारी संख्या में भाग लिया. कर्मचारियों ने अपनी लंबित मांगों के समर्थन में आवाज उठाई और चेतावनी दी कि अगर उनकी मांगों का समाधान नहीं हुआ, तो वे हड़ताल करने पर मजबूर होंगे.

डीटीसी कर्मचारी एकता यूनियन के अध्यक्ष ललित चौधरी ने से कहा, “हमारी माताओं और बहनों ने जो प्रदर्शन शुरू किया था, हम उनके समर्थन में यहां इकट्ठे हुए हैं. हमारी मांग है कि हमें समान काम के लिए समान वेतन मिले, और हमें पक्की नौकरी दी जाए. हम चाहते हैं कि हमें 60 साल की उम्र तक रोजगार की गारंटी मिले, जैसा कि दिल्ली सरकार ने कुछ साल पहले वादा किया था. हमारे साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए, हमें सम्मानजनक वेतन मिलना चाहिए. हमारी मांग है कि डीटीसी का निजीकरण तुरंत बंद किया जाए, क्योंकि निजी बस ऑपरेटरों को डीटीसी की बसों की सेवा देने से दिल्ली की जनता को कोई फायदा नहीं होगा.”

ललित चौधरी ने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने उनकी मांगों का समाधान नहीं किया, तो कर्मचारी आंदोलन और तेज कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि पहले ही 13 नवंबर को अल्टीमेटम दिया गया था कि अगर समस्याओं का समाधान नहीं किया गया, तो हम हड़ताल, धरना-प्रदर्शन या चक्का जाम जैसे कदम उठा सकते हैं. हमें उम्मीद थी कि सरकार हमारी समस्याओं को गंभीरता से लेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि वह हमें नजरअंदाज कर रही है.

डीटीसी के कंडक्टर इमरान खान ने कहा, “हमारी मांगें बिल्कुल सही हैं. दिल्ली हाई कोर्ट ने पहले ही आदेश दिया है कि डीटीसी का निजीकरण रोका जाए, लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही है. हमें एक स्थिर नौकरी और समान वेतन की आवश्यकता है. आजकल डीटीसी की नई इलेक्ट्रिक बसों में एक भी डीटीसी कर्मचारी का ड्राइवर नहीं है. सभी निजी कंपनियों के ड्राइवर इन बसों को चला रहे हैं. हम अपनी नौकरी की सुरक्षा चाहते हैं. हमारे कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी हर रोज शोषण का सामना कर रहे हैं, और कई बार तो वे मानसिक दबाव के कारण आत्महत्या तक कर लेते हैं.”

पीएसके/एकेजे