सहारा निवेशकों की पाई-पाई होगी वापस: झारखंड चुनाव में भाजपा का बड़ा ऐलान, बनेगा गेम चेंजर?

एक दौर था जब सहारा ग्रुप का नाम देश के शीर्ष उद्योगों में गिना जाता था. सहारा एयरलाइंस, सहारा मीडिया, सहारा होम्स से लेकर कई क्षेत्रों में सहारा ग्रुप का दबदबा था. उस समय सहारा ने एक चिटफंड योजना की शुरुआत की, जिसमें लाखों गरीब और मध्यमवर्गीय भारतीयों ने अपनी मेहनत की कमाई को निवेश किया. हर रोज थोड़ी-थोड़ी रकम जमा करके इन निवेशकों को उम्मीद थी कि उन्हें भविष्य में बेहतर रिटर्न मिलेगा और उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा.

सहारा का पतन और निवेशकों का दर्द

जब सहारा ग्रुप ने अचानक इन निवेशकों का पैसा लौटाने से इनकार किया, तो लोगों का विश्वास टूट गया. करोड़ों लोगों की खून-पसीने की कमाई संकट में फंस गई. इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने भी सहारा ग्रुप पर शिकंजा कसते हुए 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने का निर्देश दिया. भुगतान करने में विफल रहने के चलते सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय को 2014 में जेल भेज दिया गया, और इसके बाद सहारा ग्रुप का साम्राज्य नीचे गिरता चला गया.

इस धोखाधड़ी का सबसे बड़ा खुलासा तब हुआ जब नेशनल हाउसिंग बैंक (NHB) को रोशन लाल नामक एक व्यक्ति ने पत्र लिखकर सहारा के बॉन्ड नियमों में गड़बड़ी की शिकायत की. इसके बाद मामला SEBI के पास पहुंचा और जांच शुरू हुई. सुब्रत रॉय ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ कार्रवाई राजनीतिक कारणों से हुई है, क्योंकि उन्होंने खुलकर इटली मूल के लोगों के देश का प्रधानमंत्री बनने पर सवाल उठाए थे.

UPA सरकार और सहारा के रिश्ते पर उठे सवाल

2008 में आरबीआई ने सहारा इंडिया फाइनेंशियल कॉर्प लिमिटेड पर पब्लिक के पैसे जमा करने पर रोक लगा दी और सहारा को निवेशकों का पैसा लौटाने का आदेश दिया. रिपोर्ट्स के मुताबिक, तत्कालीन यूपीए सरकार के कार्यकाल में सहारा की चिटफंड स्कीम तेजी से बढ़ी और फल-फूल रही थी. सुब्रत रॉय ने आरोप लगाया था कि इस योजना की शुरुआत और उस पर कार्रवाई के समय, देश का वित्त मंत्री एक ही व्यक्ति था. इससे यह सवाल भी खड़ा हुआ कि आखिर क्यों और कैसे सरकार का रुख सहारा के प्रति बदला?

इस विवाद में सहारा और यूपीए के गहरे रिश्ते का आरोप लगने लगा, और इसका खामियाजा गरीब और मेहनतकश जनता को भुगतना पड़ा. करोड़ों गरीब परिवारों की जमा-पूंजी बर्बाद हो गई, लेकिन मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद इन निवेशकों को फिर से उम्मीद की किरण नजर आने लगी.

भाजपा का वादा – पाई-पाई वापस होगी

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद सहारा चिटफंड योजना के निवेशकों को उनकी मेहनत की कमाई वापस दिलाने का संकल्प लिया. सरकार ने इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए योजना बनाई और निवेशकों को रिफंड के लिए आवेदन करने के निर्देश दिए. भाजपा ने चुनावों में इस वादे को खुलकर दोहराया कि सहारा के निवेशकों की पाई-पाई वापस की जाएगी.

झारखंड में आगामी चुनाव के दौरान भाजपा ने इसे अपना एक बड़ा चुनावी वादा बनाया है. पार्टी का मानना है कि यह मुद्दा भाजपा के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है और राज्य में चुनावी समीकरण बदल सकता है.

झारखंड चुनाव में भाजपा को फायदा?

सहारा के निवेशकों में अधिकांश वे लोग हैं जो मेहनतकश और आमजनता से आते हैं. इन लोगों ने सहारा में निवेश कर भविष्य में आर्थिक सुरक्षा की उम्मीद की थी, लेकिन उन्हें सिर्फ निराशा और धोखा मिला. भाजपा ने झारखंड में यह वादा किया है कि वह निवेशकों के हितों की रक्षा करेगी और उनकी मेहनत की कमाई वापस दिलाएगी.

इस वादे से भाजपा को झारखंड में एक महत्वपूर्ण चुनावी बढ़त मिल सकती है, खासकर उन वर्गों में जो सहारा के निवेशक रहे हैं. यह चुनावी घोषणा झारखंड में भाजपा के लिए एक निर्णायक मुद्दा बन सकती है और इसे राज्य में पार्टी का गेम चेंजर माना जा रहा है.

क्या भाजपा का सहारा निवेशकों को पैसा लौटाने का वादा सच साबित होगा?

अब सवाल उठता है कि क्या भाजपा सरकार सचमुच इन निवेशकों की पाई-पाई लौटाने में सफल होगी या यह सिर्फ चुनावी रणनीति तक सीमित रह जाएगा? सहारा घोटाले में फंसे लोगों को इस वादे से उम्मीदें तो हैं, लेकिन वे अभी भी संशय में हैं कि क्या यह वादा पूरा होगा.

निवेशकों की सुरक्षा, न्याय और उनके हक की गारंटी देने का यह वादा, यदि हकीकत में बदलता है, तो न केवल झारखंड में भाजपा के लिए बड़ा लाभकारी साबित हो सकता है, बल्कि यह संदेश देश के अन्य राज्यों के निवेशकों तक भी पहुंच सकता है. अगर यह मुद्दा झारखंड में भाजपा के लिए कारगर सिद्ध होता है, तो यह भविष्य में दूसरे राज्यों के चुनावों में भी पार्टी के लिए एक मजबूत हथियार बन सकता है.

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