नई दिल्ली, 4 नवंबर . ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यमुना नदी अब गंभीर प्रदूषण स्तरों का सामना कर रही है. हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, यमुना में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा पिछले साल की तुलना में 10 गुना बढ़ गई है. यह बैक्टीरिया मानव और पशु अपशिष्ट के प्रदूषण का स्पष्ट संकेत है.
फेकल कोलीफॉर्म की बढ़ती मात्रा ने यमुना के पानी को विषैला और दुर्गंधयुक्त बना दिया है, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर चिंताएं उत्पन्न हो गई हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति जल प्रदूषण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य के लिए भी खतरनाक हो सकती है. इस संकट का एक प्रमुख कारण सीवेज उपचार संयंत्रों की प्रभावशीलता में कमी है. ये संयंत्र वेस्ट वाटर को प्रोसेस और शुद्ध करने के लिए बनाए गए हैं, लेकिन कई सीवेज उपचार संयंत्र अपनी क्षमता से कम काम कर रहे हैं या आवश्यक उपचार मानकों को पूरा करने में असफल हैं.
इसके परिणामस्वरूप जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग के स्तर में वृद्धि होती है, जो पानी में जैविक सामग्री के विघटन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है. जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग के उच्च स्तर अत्यधिक जैविक प्रदूषकों की उपस्थिति का संकेत देते हैं, जो पानी में ऑक्सीजन को कम कर सकते हैं और जलीय जीवन को खतरे में डाल सकते हैं.
हालांकि, पर्यावरणीय नियम कड़े हैं और अवैध अपशिष्ट के निपटान पर जुर्माने लगाए जाते हैं, लेकिन इनका प्रभावी कार्यान्वयन कमजोर है. यह नियामक कमी यह सुनिश्चित करती है कि एक बड़ी मात्रा में बिना उपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट सीधे नदी में प्रवाहित होता रहे. इन चुनौतियों का उचित समाधान न करना यमुना के प्रदूषण की समस्या को बढ़ाता है, जिससे नदी की पारिस्थितिकी संकट में पड़ जाती है और उन लोगों के जीवन यापन को खतरे में है, जो पानी और कृषि के लिए इस पर निर्भर हैं.
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पीएसके/एएस