भीलवाड़ा, 2 अक्टूबर . हर बार की तरह इस बार भी दीपावली के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में गोवर्धन पूजा और अन्नकूट प्रसादी का आयोजन हुआ. राजस्थान के भीलवाड़ा में गाय के गोबर से बनाए गोवर्धन की पूजा और अन्नकूट बनाकर गायों की पूजा कर खुशहाली की कामना की गई.
राजस्थान के भीलवाड़ा के कई घरों में महिलाएं शनिवार सुबह को गोवर्धन पूजा में जुटी रहीं. पूजा कर रही एक गृहिणी सुशीला देवी ने बताया कि दीपावली पर्व के दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा के शुक्ल पक्ष को गोवर्धन पूजा की जाती है. ये मान्यता तब से चल रही है, जब से श्रीकृष्ण भगवान ने गोकुल वासियों को इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा.
पूजा को लेकर महिलाएं गोबर से भगवान गोवर्धन बनाने के साथ ही गाय की पूजा में जुट गईं. कई मंदिरों में आज ही अन्नकूट महोत्सव मनाया जाता है.
भीलवाड़ा में जगह जगह महिलाएं पूजन अर्चन में जुटी दिखीं. सबने धार्मिक महत्व बताया. स्थानीय महिला ने बताया, ऐसी मान्यता है कि इंद्र के कोप से हो रही वर्षा से गोकुल वासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी अंगुली पर उठाया था. तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है.
इंद्र को जब पता चला कि कृष्ण ही भगवान विष्णु के अवतार हैं, तब उन्होंने उनसे माफी मांगी, इसके बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पूजा के लिए कहा और इसे अन्नकूट पर्व के रूप में मनाया जाने लगा. वेदों के अनुसार, इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा की जाती है. साथ में गायों का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है और उन्हें फल मिठाइयां खिलाई जाती हैं.
राजस्थान में गोवर्धन पूजा को बड़ी श्रद्धाभक्ति के साथ मनाया जाता है. परम्परानुसार गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है. इसके बाद उसकी फूल, धूप, दीप, नैवेद्य से उपासना की जाती है. इस दिन एक ही रसोई से घर के सभी सदस्य का भोजन बनता है. भोजन में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं. सुबह के वक्त शरीर पर तेल मलकर स्नान करने और घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाने, गोबर का गोवर्धन पर्वत बनाकर ग्वाल बाल, पेड़ पौधों की आकृति बनाने का विधान है.
मध्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति भी कई जगह रखी जाती है इसके बाद भगवान कृष्ण, ग्वाल-बाल,और गोवर्धन पर्वत का पूजन कर उन्हें पकवान और पंचामृत का भोग लगाया जाता है. पूजा के दौरान महिलाएं गोवर्धन पूजा की कथा सुनती हैं.
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एससीएच/केआर