हाजीपुर, 2 अक्टूबर . हाजीपुर का चिनिया केला देशभर में अपनी गुणवत्ता और स्वाद के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन हाल की आपदाओं के कारण इसकी पैदावार में भारी कमी आई है. जिससे इस केले की पैदावार करने वाले किसान चिंतित है. यह बिहार के हाजीपुर जिले में बड़ी मात्रा में उगाया जाता है.
यह केला लंबे समय तक ताजा रहता है और इसमें आयरन और फोलिक एसिड जैसे सेहतमंद तत्व होते हैं. हालांकि, इसकी नाजुकता के कारण इसके उत्पादन में गिरावट आई है. वर्तमान में चिनिया केले की खेती लगभग 30,000 एकड़ में हो रही है. इसके बावजूद छठ पूजा के दौरान इसकी इतनी मांग होती है कि मांग की केवल 10 फीसदी आपूर्ति ही हो पाती है.
बाकी केला बाहर से आयात करना पड़ता है. स्थानीय बाजार में हाजीपुर के केले के लिए बाहर से खरीददार आते हैं. इस बार कम हो रही पैदावार से किसान चिंतित हैं. छठ पूजा के दौरान भी इसके कम होने के साफ संकेत हैं.
जिले के केला किसान बिहारी प्रसाद सिंह बताते हैं, “केले की स्थिति बहुत खराब है. आंधी-तूफान के कारण फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई है. अब कुछ भी नहीं निकलता, फसल सब समाप्त हो गई है. हाजीपुर का केला मशहूर है, और लोग दूर-दूर से इसे लेने आते हैं. लेकिन इस बार मजदूर भी नहीं आए हैं. कोई भी बाजार जाने के लिए नहीं निकला. किसानों की स्थिति बहुत दयनीय है.”
उन्होंने आगे कहा, “किसानों को राहत मिलनी चाहिए, क्योंकि हालात बहुत खराब हैं. खेती ही उनकी मुख्य आय का साधन है, और हाजीपुर में केला ही उनकी मुख्य फसल है. हमें किसानों की मजबूरियों को समझना होगा.”
एक अन्य किसान नरेश कुमार बताते हैं, “इस बार केला की स्थिति बहुत गंभीर है. पिछले दो साल से हम किसान इसी तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं. हम मेहनत करके फसल तैयार करते हैं, लेकिन जब फसल पकने का समय आता है, तब या तो आंधी आती है या भारी बारिश. पिछले साल बस यही हुआ, जिससे हमारा बहुत नुकसान हुआ. इस बार हमारी फसलें भी बर्बाद हो गई हैं. हमारे पास जो भी बड़ा केला था, वह भी खराब हो गया है. अब कुछ भी काम का नहीं रहा. जिन फसलों पर हम भरोसा करते थे, वे भी तैयार होने में समय लेंगी और कब तक आएंगी, इसका कोई भरोसा नहीं है. छठ पूजा के समय में फसल की पूर्ति कैसे होगी, यह एक बड़ा सवाल है.”
उन्होंने आगे कहा, “हाजीपुर का केला तो सबसे बड़ा नाम है, लेकिन अब बाहर से जो केला मंगा रहे हैं, उसका स्वाद और मिठास हाजीपुर के केले जैसा नहीं है. चाहे केला छोटा हो, मोटा हो या पतला, हमें अपनी फसल पर भरोसा है, लेकिन पैसा नहीं है कि हम बाहर से केला खरीद सकें. बाहर का केला तो 800 से 1000 रुपये तक मिल रहा है, और हमारे पास वह खर्च उठाने की क्षमता नहीं है. हम लोग खेती करते आ रहे हैं. मेरे पिता पहले करते थे, और अब हम पिछले दो-चार साल से इस काम में हैं. हम यही कर रहे हैं, लेकिन स्थिति बहुत खराब है. अब कुछ और कहने को नहीं है.”
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पीएसएम/एएस