दिवाली पर वाराणसी में बनाई जाती है गंगा की मिट्टी से मूर्ति, सालों से चली आ रही ये परंपरा

वाराणसी,29 अक्टूबर . वाराणसी अपनी कला, संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है. गुलाबी मीनाकारी हो या लकड़ी के खिलौने, बनारसी पान हो या बनारसी साड़ी, ये बनारस को पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाते हैं. ऐसा ही एक काम है बनारस के लक्ष्मी क्षेत्र में बनने वाली पारंपरिक गंगा गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां. दिवाली के समय इनकी मांग ज्यादा होती है, लेकिन बाकी दिनों में इनका कारोबार खत्म होता नजर आता है.

मूर्ति खरीदने आए ग्राहक कन्हैया पांडेय ने से कहा, “वाराणसी में आज भी लोग अपनी संस्कृति को नहीं भूले हैं. उन्होंने कहा कि इस दौर में बाजारों में सोने, चांदी, पीतल और अन्य धातुओं से बनी मूर्तियां बिक रही हैं. फिर वाराणसी में लोग मिट्टी से बनी मूर्तियां ही खरीदते हैं. क्योंकि यह मूर्ति गंगा की शुद्ध मिट्टी से बनी है. इसे सालों से पारंपरिक तरीके से बनाया जाता है. इसलिए मैं भी यहां मिट्टी से बनी मूर्तियां खरीदने आया हूं.”

ग्राहक आलोक ने बताया कि यहां की मान्यता है कि लोगों को मिट्टी से बनी मूर्तियों की पूजा करनी चाहिए. सबसे खास बात यह है कि यह मूर्ति गंगा की मिट्टी से बनी है. इसके रंग में किसी तरह के रसायन का इस्तेमाल नहीं किया गया है. बाजार में मिट्टी की मूर्ति देखकर हमारी पारंपरिक संस्कृति झलकती है. हम कई सालों से दिवाली पर मिट्टी से बनी मूर्तियां खरीदते आ रहे हैं.

कारीगर मधु ने बताया कि यह मूर्ति काशी और गंगा की मिट्टी से दीपावली पर बनाई जाती है. खास बात यह है कि बनारस में बनने वाली मूर्तियां अन्य मूर्तियों से अलग आकार की होती हैं. यहां तिल (एक प्रकार की लकड़ी) से मूर्तियां बनाई जाती हैं. खास तौर पर दीपावली पर यहां तिल (एक प्रकार की लकड़ी) से बनी मूर्तियों की मांग अधिक होती है. यहां बनी मूर्तियां वाराणसी समेत देश के कई शहरों में बिकती हैं. एक मूर्ति की कीमत करीब 50 से 100 रुपये तक होती है.

बता दें कि वाराणसी में बनी मूर्तियां दिल्ली, मुंबई, पटना और गया समेत कई शहरों में भेजी जाती हैं. गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों को बनाने में गंगा की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है. ये मूर्तियां बिना रासायनिक रंगों के बनाई जाती हैं, जिनका इस्तेमाल पूजा के ल‍िए किया जाता है. लोग अपने घरों में इन मूर्तियों की पूजा करते हैं.

आरके/