नई दिल्ली, 29 अक्टूबर . ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपने शोध में पाया है कि मातृ मानसिक स्वास्थ्य पर प्लेसेंटा का भी अप्रत्याशित प्रभाव पड़ता है. ये नई खोज गर्भावस्था के दौरान होने वाली चिंता और अवसाद के कारण को समझने में मदद कर सकता है.
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के मेटर रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने प्लेसेंटा में 13 अलग-अलग ग्लूकोकॉर्टिकॉइड रिसेप्टर आइसोफॉर्म की पहचान की है, जिसमें से एक विशेष प्रकार गर्भावस्था के दौरान चिंता और अवसाद को दर्शाता है.
ब्रेन मेडिसिन में प्रकाशित जीनोमिक प्रेस साक्षात्कार में प्रोफेसर विकी क्लिफ्टन ने कहा, ” हमने शोध में पाया कि प्लेसेंटा में ग्लूकोकोर्टिकॉइड रिसेप्टर के 13 अलग-अलग आइसोफॉर्म होते हैं, जिनमें से एक आइसोफॉर्म गर्भावस्था के दौरान तनाव, चिंता और अवसाद का कारण बनता है. ये हाई कोर्टिसोल स्तर की उपस्थिति में प्लेसेंटा में एक इन्फ्लेमेटरी रिस्पॉन्स को सक्रिय करता है.”
शोध गर्भावस्था के दौरान तनाव प्रतिक्रियाओं की पारंपरिक समझ को चुनौती देता है. अधिकांश ग्लूकोकोर्टिकॉइड रिसेप्टर्स सूजन को दबाने का काम करते है तो वहीं यह नया वेरिएंट सूजन को बढ़ाने का काम करता है. ये गर्भवती महिलाओं में तनाव और सूजन के बीच के संबंध को दर्शाता है.
प्रोफेसर क्लिफ्टन के शोध ने नर और मादा भ्रूणों के बीच महत्वपूर्ण अंतरों का भी खुलासा किया है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में हम प्रसूति विज्ञान में भ्रूण के लिंग पर विचार नहीं करते हैं. मैं समय से पहले जन्मे नवजात शिशुओं की देखभाल और गर्भावस्था की जटिलताओं के लिए लिंग-विशिष्ट चिकित्सा देखना चाहूंगी.
शोध से पता चलता है कि भ्रूण के लिंग के आधार पर मां का शरीर अलग तरीके से काम कर सकता है. इस शोध से गर्भवती की देखरेख को लेकर नई संभावनाएं पैदा होती हैं.
अब टीम का लक्ष्य यह पता लगाना है कि प्लेसेंटल इन्फ्लेमेशन किस तरह से मां के मानसिक स्थिति पर असर डाल सकता है. जिससे गर्भावस्था के दौरान चिंता और अवसाद के लक्षण बढ़ सकते हैं. ये निष्कर्ष प्रसवकालीन मानसिक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति दृष्टिकोण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं.
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एमकेएस/केआर