नोएडा, 26 अक्टूबर . वायु प्रदूषण आज एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गया है, खासकर गर्भवती महिलाओं और उनके नवजात बच्चों के लिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लगभग 4.2 मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण असामयिक मृत्यु का शिकार होते हैं. गर्भवती महिलाएं और उनके बच्चे प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं.
सर्दियों के मौसम (नवंबर से जनवरी) के दौरान प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ जाता है. खासकर दिल्ली और एनसीआर में. इस दौरान धुंध और स्मॉग के कारण वायु की गुणवत्ता में गिरावट होती है, जो गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए काफी ज्यादा हानिकारक होती है. नोएडा के सेक्टर-119 में स्थित मदरलैंड अस्पताल की वरिष्ठ स्त्री-रोग विशेषज्ञ डॉ. कर्णिका तिवारी ने बताया है कि बढ़ते प्रदूषण के चलते प्रीटर्म बर्थ का खतरा बढ़ जाता है.
स्टडी के अनुसार, हाई प्रदूषण के संपर्क में आने से प्रीटर्म बर्थ (समय से पहले जन्म) का खतरा बढ़ जाता है, जिससे नवजात बच्चों को अधिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. उसके साथ ही लो बर्थ वेट का खतरा भी बढ़ जाता है. अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन के अनुसार, प्रदूषित वातावरण में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के बच्चों का जन्म का वजन सामान्य से कम हो सकता है. इसके अलावा गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है.
वायु प्रदूषण गर्भवती महिलाओं में अस्थमा जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है, जो बच्चे के विकास को प्रभावित कर सकती हैं. इसके अतिरिक्त, गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के संपर्क में आने से एडीएचडी और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर का खतरा भी बढ़ सकता है. डॉ. कर्णिका तिवारी ने बताया कि नियमित जांचों के माध्यम से संभावित जटिलताओं का समय पर समाधान किया जा सकता है.
उन्होंने गर्भवती महिलाओं को सलाह दी कि वे बाहर जाते समय उच्च गुणवत्ता वाले प्रदूषण मास्क पहनें. घर की हवा को शुद्ध रखने के लिए एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें. ग्रीन टी और एंटीऑक्सीडेंट युक्त भोजन करें, विटामिन सी और अन्य एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें. इसके अलावा, घर में एयर प्यूरिफाइंग पौधे लगाएं जो वायु को शुद्ध करने में मदद करते हैं. नियमित स्वास्थ्य जांच, प्रदूषण से बचने के उपाय और सही जानकारी के माध्यम से वे अपनी तथा अपने बच्चे की सेहत को सुरक्षित रख सकती हैं.
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पीकेटी/एफजेड