तीन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों को मिला प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार

स्टॉकहोम, 14 अक्टूबर . रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज ने सोमवार को तीन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया.

उन्होंने इस बात पर नई अंतर्दृष्टि प्रदान की कि देशों के बीच समृद्धि में इतना बड़ा अंतर क्यों है तथा इस पहेली को सुलझाने में मदद करने का प्रयास किया कि क्यों कुछ देश अमीर और अन्य गरीब हैं.

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के डेरॉन ऐसमोग्लू और साइमन जॉनसन तथा अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के जेम्स ए. रॉबिन्सन को इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

ऐसमोग्लू, जॉनसन और रॉबिन्सन ने देश की समृद्धि के लिए सामाजिक संस्थाओं के महत्व को प्रदर्शित किया है.

अकादमी ने कहा, “जिन समाजों में कानून का शासन खराब है और संस्थाएं जनसंख्या का शोषण करती हैं, वहां विकास नहीं होता और न ही बेहतर बदलाव होता है. पुरस्कार विजेताओं के शोध से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि ऐसा क्यों होता है.”

पुरस्कार समिति के अध्यक्ष जैकब स्वेन्सन ने कहा, “देशों के बीच आय में भारी अंतर को कम करना हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विजेताओं ने सामाजिक संस्थाओं के महत्व को बताया है.”

नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने दिखाया है कि देशों की समृद्धि में अंतर का एक कारण उपनिवेशीकरण के दौरान शुरू की गई सामाजिक संस्थाएं हैं. कुछ उपनिवेशों में इसका उद्देश्य स्वदेशी आबादी का शोषण करना और उपनिवेशवादियों को लाभ पहुंचाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करना था.

अन्य मामलों में उपनिवेशवादियों ने यूरोपीय निवासियों के दीर्घकालिक लाभ के लिए समावेशी राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था का निर्माण किया.

अकादमी के एक बयान के अनुसार, “यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि पूर्व उपनिवेश जो कभी समृद्ध थे, अब गरीब हो गए हैं और जो गरीब थे, वो अमीर हो गए हैं.”

शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि जब तक राजनीतिक व्यवस्था यह गारंटी देती रहेगी कि अभिजात वर्ग नियंत्रण में रहेगा, तब तक कोई भी भविष्य के आर्थिक सुधारों के उनके वादों पर भरोसा नहीं करेगा.

पुरस्कार विजेताओं के अनुसार यही कारण है कि कोई सुधार नहीं होता है.

हालांकि, सकारात्मक परिवर्तन के विश्वसनीय वादे करने में असमर्थता यह भी बता सकती है कि कभी-कभी लोकतंत्रीकरण क्यों होता है.

अकादमी ने स्पष्ट किया, “जब क्रांति का खतरा होता है तो सत्ता में बैठे लोगों को दुविधा का सामना करना पड़ता है. वे सत्ता में बने रहना पसंद करेंगे और आर्थिक सुधारों का वादा करके जनता को खुश करने की कोशिश करेंगे, लेकिन लोगों को यह विश्वास नहीं होगा कि स्थिति सामान्य होते ही वे पुरानी व्यवस्था में वापस नहीं लौटेंगे.”

एकेएस/एबीएम