नई दिल्ली, 13 अक्टूबर . मधुशाला रचने वाले हरिवंशराय बच्चन ने हार पर बड़ी सटीक बात कही. लिखा था- हारना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई “अपनों” से हो और जीतना तब आवश्यक हो जाता है जब लड़ाई “अपने आप ” से हो. तो इंटरनेशनल फेल्योर डे का मर्म भी यही है. हार जाएं तो खड़े हो जाइए हिम्मत जुटा खुद से लड़िए और बाजीगर बन जाइए.
एक अनूठा उत्सव है जो हर साल 13 अक्टूबर को मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 2010 में फिनलैंड में आल्टो विश्वविद्यालय के छात्रों के एक समूह द्वारा की गई थी. मुट्ठी भर छात्रों ने फिनलैंड में अपने मेहनत को पहचानने की सीख के साथ शुरुआत की. दरअसल, उस दौर में ये एक ऐसा देश बन गया था जहां असफलता का डर कई लोगों को नए उद्यम शुरू करने से रोक रहा था. स्टार्ट अप कंपनियां उड़ान नहीं भर पा रही थीं.
उद्यमी समाज के सदस्यों को कहा गया कि स्टार्टअप कंपनियां तब तक सफल नहीं होंगी जब तक कि संस्थापक अपनी पिछली असफलताओं को स्वीकार न करें – और फिनिश संस्कृति में, असफलता के डर ने कई लोगों के कदम रोक दिए थे. इस डे को सेलिब्रेट करने का नतीजा भी शानदार रहा. विदेशी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक में, फिनिश स्टार्टअप्स में 2013 में कुल निवेश €186 मिलियन था जो बढ़कर 2022 में €1.79 बिलियन हो गया.
तो इस तरह यहां लोगों ने हार से सबक ले जीत के साथ कदम आगे बढ़ा दिया.
फिनलैंड का ये प्रयोग दुनिया को पसंद आया और धीरे-धीरे हार से सबक ले आगे बढ़ने का हुनर कइयों ने सीख लिया.
फेल्योर डे पर हेनरी फोर्ड की भी बात कर लेते हैं. किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. दुनिया फोर्ड की गाड़ियां चलाती हैं. 1900 के दशक की शुरुआत में, फोर्ड मोटर कंपनी को एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ा. दरअसल, मॉडल टी को असेंबल करने की पारंपरिक विधि में लगभग 12 घंटे लगते थे, जिससे कारें औसत उपभोक्ता के लिए बहुत महंगी हो जाती थीं. ये एक बहुत बड़ा मसला था. जिसने फोर्ड उत्पादन क्षमता को प्रभावित किया.
1913 में मोड़ तब आया जब फोर्ड ने ‘मूविंग असेंबली लाइन’ की शुरुआत की. मीट पैकिंग जैसे अन्य उद्योगों से प्रेरित होकर, श्रम विभाजन को महत्व दिया. एक काम में विशेषज्ञता को तरजीह दी. इससे उत्पादन का समय 12 घंटे से घटकर प्रति कार केवल 90 मिनट रह गया. 1924 तक, मॉडल टी की कीमत 825 डॉलर से घटकर 260 डॉलर हो गई, और फोर्ड सालाना 2 मिलियन से अधिक वाहन बनाने लगा. ये एक क्रांति थी जो एक असफलता से शुरू होकर जबरदस्त सफलता में बदल गई.
सो इस तरह, इंटरनेशनल फेल्योर डे की अवधारणा इस विश्वास पर आधारित है कि असफलताओं को समझना और साझा करना विकास और सफलता के क्रम में जरूरी है, क्योंकि तभी सफलता आपके द्वार पर दस्तक देती है. अमेरिकी उपन्यासकार और ऐक्टर ट्रूमैन कैपोट ने कहा था कि, विषम परिस्थितियां ही महान सफलता का कारण बनती हैं. असफलता वह मसाला है जो सफलता का स्वाद देता है.
–
केआर/