जयंती विशेष: ग्वालियर की राजमाता, नाजों में पलीं, राजशाही से लोकशाही में बड़े अदब से किया प्रवेश

नई दिल्ली, 11 अक्टूबर . देश पर अंग्रेजों का राज था. साल वही जलियांवाला कांड वाला यानि 1919. इसी साल 12 अक्टूबर को जालौन के डिप्टी कलेक्टर महेंद्र सिंह की बेटी का जन्म हुआ. मध्य प्रदेश के सागर स्थित ननिहाल में पैदा हुई बच्ची का नाम रखा गया लेखा देवेश्वरी देवी. परिवार नहीं जानता था कि ये समृद्ध परिवार में जन्मी बच्ची आगे जाकर राजमाता विजयाराजे सिंधिया कहलाएंगी.

मां, नेपाली सेना की पृष्ठभूमि से जुड़े प्रिंस खडग शमशेर जंग बहादुर राणा की बेटी थीं. जिनकी शादी उरई के जादौन परिवार में हुई थी.लेखा के जन्म के 13 दिन बाद मां का निधन हो गया. और नवजात की परवरिश ननिहाल में ही हुई. फिर पढ़ाई के लिए बनारस और लखनऊ में रहीं.

देखने में बेइंतहा खूबसूरत थीं. रिश्ते की बात भी हुई लेकिन बात पक्की हुई सिंधिया घराने के जिवाजीराव महाराज से. इससे जुड़ा बड़ा दिलचस्प किस्सा उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी राजपथ से लोकपथ में सुनाया है. लिखा है, सफेद घोड़े पर एक लड़का सवार था और काले घोड़े पर एक लड़की. प्राणिउद्यान के एक नौकर ने पूछने पर बताया कि वे जिवाजीराव महाराज और उनकी बहन कमलाराजे थे. अर्थात् स्वयं महाराज सिंधिया अपनी बहन के साथ थे. हम लोगों द्वारा देखे गए उस प्रासाद, किले, उद्यान और उस शेर के भी स्वामी. नानीजी के मानस पर वह दृश्य बिजली की तरह कौंध गया. सहसा उनके मुंह से निकला, ‘‘हमारी नानी (मैं) की उनके साथ कितनी सुंदर जोड़ी लगेगी!’’ इतना सुनते ही मामा और सभी हंस पड़े. किसी के मुंह से निकला, ‘‘कल्पना की उड़ान ऊंची है.’’

ये कल्पना फिर हकीकत में भी पूरी हुई. मुंबई के ताज होटल में लेखा देवेश्वरी देवी की ग्वालियर राजघराने के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से मुलाकात हुई. जीवाजी राव सिंधिया ने इन्हें पहली नजर में ही पसंद किया और फिर 21 फरवरी 1941 में दोनों की शादी हो गई. हालांकि परिवार में विरोध भी खूब हुआ. कहां ग्वालियर घराना और दूसरी ओर नेपाली पृष्ठभूमि वाली लेखा. खैर विवाह हुआ और ग्वालियर के आखिरी शासक जीवाजी राव सिंधिया की पत्नी के रूप में मान बढ़ा. नाम बदला गया और हो गईं महारानी विजयाराजे सिंधिया.

चार बेटियों और एक बेटे को जन्म दिया. रियासतों का दर्जा खत्म हो रहा था तो मजबूरन लोकपथ की राह चुनी.राजशाही खत्म होने के बाद विजयाराजे सिंधिया ग्वालियर रियासत में राजमाता के रूप में पूजी जाने लगी थीं. उन्होंने राजनीति में कदम रखा.

पहली बार 1957 में गुना से कांग्रेस की सांसद बनीं. करीब 10 साल बिताने के बाद उनका पार्टी से मोहभंग हो गया और 1967 में उन्होंने जनसंघ की सदस्यता ले ली. पति जीवाजी राव सिंधिया का 1964 में निधन हो गया था.

1971 में इंदिरा लहर थी. इसके बावजूद राजमाता का इकबाल बुलंद रहा. जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र में बड़ी जीत हासिल की. ग्वालियर अंचल की तीनों सीट जनसंघ ने जीती. पुत्र माधवराव सिंधिया जनसंघ के गुना से, राजमाता विजयाराजे सिंधिया भिंड से और अटल बिहारी बाजपेई ग्वालियर से सांसद बने.

जनसंघ का एक मजबूत स्तंभ थीं राजमाता. केंद्र और राज्य स्तर की राजनीति में एक के बाद एक सीटें दिलाने में योगदान दिया. 1980 में भाजपा के उपाध्यक्षों में से एक के रूप में, विजयाराजे का अहम स्थान रहा. जनता भी हमेशा इनके साथ खड़ी रही.

कह सकते हैं कि राजवंश की विरासत को विजयाराजे सिंधिया ने अपने बेदाग गौरव को बनाए रखते हुए आगे बढ़ाया. ग्वालियर के अंतिम सक्रिय महाराजा जीवाजीराव सिंधिया की पत्नी के रूप में, उन्होंने वर्षों तक भारत की सबसे बड़ी और सबसे अमीर रियासतों में से एक पर शासन किया. यह अपने आप में उनके लिए एक असाधारण यात्रा थी. जैसा कि ऑटोबायोग्राफी में भी उल्लेख है कि उन्होंने कई व्यक्तिगत मुद्दों से भी संघर्ष किया.

जिनमें इकलौते बेटे के साथ अनबन भी शामिल है, जिन्हें प्यार से विजयाराजे ‘भैया’ कहा करती थीं.

25 जनवरी 2001 में राजपथ से लोकपथ का रास्ता तय करने वाली राजमाता का देहावसान हो गया.

राजमाता की राजनीतिक विरासत उनकी सभी संतानों को हासिल हुई. सबसे बड़ी पुत्री पद्मावती राजे का विवाह त्रिपुरा के अंतिम शासक महाराजा किरीट बिक्रम किशोर देव बर्मन से हुआ था लेकिन वो 22 साल में स्वर्ग सिधार गईं. राजमाता की दूसरी बेटी का नाम उषा राजे राणा है जिनकी पशुपति शमशेर जंग बहादुर राणा से शादी हुई और वो नेपाली राजनेता थे. तीसरी संतान माधवराव सिंधिया थे, जिन्होंने राजनीति की शुरुआत मां की देखरेख में जनसंघ से की

इसके बाद कांग्रेस से जुड़े और मां बेटे के बीच आई दूरियों की एक वजह राजनीति ही थी.

राजमाता की चौथी संतान वसुंधरा राजे सिंधिया और पांचवी तथा अंतिम बेटी यशोधरा राजे सिंधिया हैं. दोनों ही राजनीतिक जगत का बड़ा नाम है.

केआर/