संध्या मुखर्जी, बांग्ला फिल्मों की मेलोडी क्वीन जिन्होंने पद्मश्री सम्मान तक ठुकराया

नई दिल्ली, 3 अक्टूबर . हिंदी की कुल 17 फिल्मों में संध्या मुखर्जी ने प्लेबैक किया. एक में तो दो साल बड़ी भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर के साथ. फिल्म का नाम तराना था. मधुबाला भी थीं इस मूवी में और गाना था ‘बोल पपिहे बोल’. लता-संध्या की अदावत थी ऐसा कहा जाता था, सच्चाई आखिर थी क्या?

बांग्ला फिल्मों की क्वीन जिन्हें लोग प्यार से ‘गीता श्री’ कहते थे ने 1948 में एक हिंदी फिल्म के लिए अपनी आवाज दी. नाम था अंजानगढ़ और निर्देशक थे बिमल रॉय. 4 अक्टूबर 1931 को जन्मीं संध्या मुखोपाध्याय ने संगीत का ककहरा घर में ही पढ़ा. 12 साल की उम्र से गाने लगीं. तब भजन और दुर्गा पूजा के समय गूंजने वाले गीतों को अपनी आवाज से सजाया.

मात्र 16 साल की थीं जब प्लेबैक किया. लता के साथ डुएट था. फिर बंगाल लौट गईं, खुद को यहीं तक समेट लिया. उस दौर में अफवाहें खूब उड़ीं कि लता ने टिकने नहीं दिया. दोनों के बीच शत्रुता थी लेकिन हकीकत उन्होंने 2001 में छपी जीवनी में साझा की. बताया कि ऐसा कुछ नहीं था. दोनों में अच्छी छनती थी. मौत का फासला भी रहा तो मात्र 10 दिन का. 6 फरवरी 2022 को लता गुजरीं तो 15 फरवरी को संध्या ने आखिरी सांस ली.

बांग्ला फिल्मों के सुनहरे दौर की लाजवाब गायिका थीं संध्या. उत्तम कुमार- सुचित्रा सेन की आवाज थे हेमंत दा और संध्या. गुजरे जमाने में अपनी मधुर गायिकी का सबको मुरीद बना दिया.

बड़े गुलाम अली साहब की शागिर्दी में शास्त्रीय संगीत को खूब कायदे से सीखा. अच्छी बात ये रही कि इन्होंने प्ले बैक से लेकर शास्त्रीय गायन तक में अपना दखल बराबर रखा.

संध्या मुखोपाध्याय को 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया. वो कइयों की आवाज बनीं. उन्होंने संगीतकार समर दास को स्वाधीन ‘बांग्ला बेतर केंद्र’ की स्थापना में मदद की, जिसने बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इतना ही नहीं उन्होंने भारत में शरण लेने को मजबूर एक करोड़ शरणार्थियों के लिए धन जुटाने का काम किया. प्रमुख कलाकारों के साथ निःशुल्क संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत करने में भी आगे रहीं.

2022 में कोरोना संबंधी दिक्कतों से जूझ रही संध्या का देहांत हो गया. मृत्यु से महीने भर पहले उन्हें पद्मश्री से सम्मानित करने का फैसला लिया गया. लेकिन उन्होंने लेने से इनकार कर दिया. एक ही बात कही कि अब 90 साल की उम्र में उनके जैसी दिग्गज को पद्मश्री प्रदान करना बेहद अपमानजनक है. यह पुरस्‍कार अब किसी नए कलाकार को दिया जाना चाहिए.

केआर/