बर्थडे स्पेशल: देश का पहले ‘गोल्डन ब्वाय’ जिसने हर मैदान किया फतेह

नई दिल्ली, 27 सितंबर . भारत के ओलंपिक इतिहास को सुनहरा अध्याय देने वाले भारतीय शूटिंग लीजेंड अभिनव बिंद्रा किसी पहचान के मोहताज नहीं. जब देश लंबे समय से व्यक्तिगत गोल्ड के लिए तरस रहा था, उस समय इस निशानेबाज ने गोल्ड पर निशाना साधा. खेलों के इस महाकुंभ में भारत की झोली में स्वर्ण डालने वाले अभिनव 28 सितंबर (शनिवार) को 42 वर्ष के हो जाएंगे.

अभिनव बिन्द्रा का जन्म 28 सितंबर, 1982 को उत्तराखंड में हुआ था. वह एक प्रसिद्ध निशानेबाज हैं. अपने हुनर और शानदार प्रदर्शन के दम पर वह ‘अर्जुन पुरस्कार’ और ‘खेल रत्न पुरस्कार’ पाने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी हैं. उन्हें ओलंपिक ऑर्डर अवॉर्ड से भी नवाजा जा चुका है.

भारतीय निशानेबाज ने 15 साल की उम्र में 1998 के राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया और फिर 2000 में सिडनी ओलंपिक में सबसे कम उम्र के भारतीय प्रतिभागी के रूप में भाग लिया.

अभिनव बिंद्रा ने अपने करियर में हर वह कामयाबी हासिल की जो कई लोगों के लिए महज सपना होती है. उन्होंने 11 अगस्त, 2008 को बीजिंग में आयोजित 29वें ओलंपिक खेलों में 10 मीटर एयर राइफल निशानेबाजी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा था. ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले वे भारत के पहले निशानेबाज बन गए. यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी.

बिंद्रा ने राष्ट्रमंडल खेलों में सात पदक और एशियाई खेलों में तीन पदक जीते हैं. उन्होंने 2006 आईएसएसएफ विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक भी जीता था. वे आईओसी एथलीट आयोग के सदस्य हैं, जहां वे एथलीटों के अधिकारों की वकालत करते हैं और ओलंपिक के भविष्य को आकार देने में मदद करते हैं.

उन्होंने अभिनव बिंद्रा फाउंडेशन की स्थापना की, जो एक नॉन प्रॉफिटेबल ट्रस्ट है जो उच्च प्रदर्शन वाले शारीरिक प्रशिक्षण को बढ़ावा देती है और भारतीय खेलों में खेल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करती है.

वह अंतर्राष्ट्रीय खेल निशानेबाजी महासंघ और अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति के एथलीट आयोगों का हिस्सा थे, जहां उन्होंने प्रतिभागियों के मुद्दों को सामने लाया और उनके विकास में उनकी मदद की.

उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘ए शॉट एट हिस्ट्री: माई ऑब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड’ भी जारी की है, जिसमें उन्होंने अपने प्रशिक्षण के तरीकों और निरंतर प्रयास का विवरण दिया है.

एएमजे/आरआर