लखनऊ, 26 सितंबर . आम की रंगीन प्रजातियों की यूएस और यूरोपियन देशों में अच्छी मांग है. केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) द्वारा पिछले कुछ वर्षों में रिलीज की गई आम की प्रजाति अरुणिका और अंबिका भी रंगीन हैं. जल्दी रिलीज होने वाली अवध समृद्धि भी रंगीन है. अवध मधुरिमा जो रिलीज होने की पाइप लाइन में है, वह भी रंगीन है. ऐसे में इनके निर्यात की संभावना बढ़ जाती है. योगी सरकार की मंशा सिर्फ आम के उत्पादन में ही नहीं निर्यात में भी उत्तर प्रदेश को नंबर वन बनाने की है.
एक अधिकारी ने बताया कि यूएस और यूरोपीय देशों के निर्यात मानकों को पूरा करने के लिए सरकार जेवर एयरपोर्ट के पास रेडिएशन ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित करेगी. अभी तक उत्तर भारत में कहीं भी इस तरह का ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है. इस तरह के ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ मुंबई और बेंगलुरु में हैं. इन्हीं दो जगहों के आम की प्रजातियों (अलफांसो, बॉम्बे ग्रीन, तोतापारी, बैगनफली) की निर्यात में सर्वाधिक हिस्सेदारी भी है. प्रदेश में ट्रीटमेंट प्लांट न होने से संबंधित देशों के निर्यात मानक के अनुसार ट्रीटमेंट के लिए आमों को यहां से मुंबई या बेंगलुरु भेजा जाता है और ट्रीटमेंट के बाद फिर निर्यात किया जाता. इसमें समय और संसाधन की बर्बादी होती है. साथ ही सेल्फ लाइन कम होने से गुणवत्ता भी खतरे में रहती है. इसीलिए योगी सरकार पीपीपी मॉडल पर जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पास रेडिएशन ट्रीटमेंट प्लांट लगाने जा रही है.
रेडिएशन ट्रीटमेंट तकनीक में निर्यात किए जाने वाले फल, सब्जी,अनाज को रेडिएशन से गुजरा जाता है. इससे उनमें मौजूदा कीटाणु मर जाते हैं और ट्रीटेड उत्पाद की लाइफ भी बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि ट्रीटमेंट प्लांट चालू होने पर उत्तर प्रदेश के आम बागवानों के लिए यूएस और यूरोपीय देशों के बाजारों तक पहुंच आसान हो जाएगी.
चूंकि उत्तर प्रदेश में आम का सबसे अधिक उत्पादन होता है, इसलिए निर्यात की किसी भी नए अवसर का सर्वाधिक लाभ भी यहीं के बागवानों को मिलेगा. पुराने बागों की उपज और गुणवत्ता सुधारने के लिए आम के कैनोपी प्रबंधन की जरूरत होती है. इस काम में गतिरोध दूर करने के लिए योगी सरकार शासनादेश भी जारी कर चुकी है. वैज्ञानिक लगातार बागवानों को पुराने बागों को इस विधा से प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित भी कर रहे हैं. कुछ समय बाद आम की उपज और गुणवत्ता पर इसका असर दिखेगा.
आम के निर्यात की अपार संभावनाएं हैं. खासकर अमेरिका और यूरोपीय देशों में. पिछले दिनों सीआईएसएच रहमानखेड़ा (लखनऊ) में आम पर आयोजित राष्ट्रीय गोष्ठी में इजरायल के वैज्ञानिक युवान कोहेन ने कहा भी था कि भारत को यूरोपीय बाजार की पसंद के अनुसार आम का उत्पादन करना चाहिए. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी हरदम किसानों से कृषि विविधीकरण और बाजार की मांग के अनुसार फसल लेने पर जोर देते हैं. हालांकि आम के उत्पादन में भारत में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. देश के कुल आम उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक है. लेकिन निर्यात में बहुत पीछे है.
पिछले साल इनोवा फूड के एक प्रतिनिधिमंडल ने कृषि उत्पादन आयुक्त देवेश चतुर्वेदी से मुलाकात की थी. निर्यात के बाबत बात चली तो उन लोगों ने बताया कि यूएस और यूरोपीय बाजार में चौसा और लगड़ा की ठीक ठाक मांग है. उनके निर्यात के मानकों को पूरा किया जाय तो उत्तर प्रदेश के लिए यह संभावनाओं वाला बाजार हो सकता है. मालूम हो कि ये दोनों प्रजातियां उत्तर प्रदेश में ही पैदा होती हैं. जरूरत सिर्फ बाजार की मांग के अनुसार आम के उत्पादन और संबंधित देशों के निर्यात मानकों को पूरा करने की है. इसके लिए योगी सरकार हर संभव प्रयास भी कर रही है.
आम की लाल रंग की प्रजातियां सिर्फ देखने में ही आकर्षक नहीं होतीं. स्वास्थ्य के लिहाज से भी ये बेहतर हैं. आम या किसी भी फल के लाल रंग के लिए एंथोसायनिन जिम्मेदार होता है. इससे इसकी पौष्टिकता बढ़ जाती है. अब तक के शोध बताते हैं एंथोसायनिन मोटापे और मधुमेह की रोकथाम में सहायक हो सकता है. यह संज्ञानात्मक और मोटर फ़ंक्शन को मॉड्यूलेट करने, याददाश्त बढ़ाने और तंत्रिका कार्य में उम्र से संबंधित गिरावट को रोकने में भी मददगार हैं. इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट भी सेहत के लिए जरूरी है. इसमें एंटीइंफ्लेमेट्री गुण भी पाए जाते हैं. साथ ही आम में मिलने वाले अतिरिक्त पोषक तत्व भी.
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