‘वर्क प्रेशर’, आखिर क्यों ये शब्द बना हुआ है चर्चा में ? ‘जनरेशन जेड’ हो रहा शिकार

नई दिल्ली, 25 सितंबर . ‘वर्क प्रेशर’, ये शब्द इन दिनों चर्चा में है. वजह है युवाओं और खास तौर पर ‘जनरेशन जेड’ पर इसका साइड इफेक्ट. जरूरी नहीं यह किसी एक सेक्टर में हो, स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले युवा हों या फिर कॉर्पोरेट वर्कर, हर जगह यह शब्द परेशानी का सबब बना हुआ है. यहां तक की खेल जगत भी इससे अछूता नहीं है. हाल ही में कॉर्पोरेट सेक्टर से ऐसी कुछ खबरें सामने आईं, जिसने सबका ध्यान इस ओर खींचा है.

काम जरूरी है, पढ़ना और कमाना भी जरूरी है, लेकिन जान और सेहत से ज्यादा नहीं. लेकिन आज के दौर में लोग तरक्की की राह पर इस कदर लीन है कि वो जीवन को कमतर आंकने लगे हैं. इसका सबसे बड़ा शिकार है ‘जनरेशन जेड’. आखिर इसकी वजह क्या है और इससे कैसे बचा जाए?

दरअसल, आज के दौर में युवाओं में बढ़ती मौतों का कारण उन पर पड़ने वाला वर्क प्रेशर है. वर्क लाइफ बैलेंस सही नहीं होने और अधिक दबाव झेलने की वजह से युवा अपनी जिंदगी को खत्म कर रहे हैं. कॉर्पोरेट टॉर्चर, लाइफ बैलेंस मैनेजमेंट और कमजोर मेंटल स्ट्रेंथ इसकी बड़ी वजह बन गए हैं.

कॉर्पोरेट सेक्टर में काम करने वाले लोग वर्क स्ट्रेस से दूर रहने की कोशिश करें. अगर आप पर अधिक काम का दबाव है, तो इस संबंध में आपको किसी से बात करनी चाहिए, ताकि वर्क लोड को कम किया जा सके.

इसके अलावा लाइफ बैलेंस मैनेजमेंट को सही करने का प्रयास करें. इसलिए अधिक से अधिक समय खुद को दें और कोशिश करें कि छुट्टी पर रहने के दौरान किसी तरह के वर्क स्ट्रेस का दबाव न लें.

यही नहीं, कमजोर मेंटल स्ट्रेंथ को इसकी एक बड़ी वजहों में भी गिना जाता है. इसलिए किसी भी काम को जल्दबाजी में न करें और उस काम को करते समय थोड़ा धैर्य रखें, ताकि आप पर किसी तरह का कोई स्ट्रेस न रहे.

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