भाई-भतीजावाद और विश्वासघात: सोरेन परिवार झारखंड में सत्ता पर बना रहा है पकड़

झारखंड की राजनीति में दशकों से सोरेन परिवार का गहरा प्रभाव रहा है. 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना के बाद से, सोरेन परिवार एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरा. लेकिन हाल के वर्षों में उनकी सत्ता पर पकड़ कमजोर होती दिख रही है. कई विवादों ने उन्हें घेरा है, जिससे उनकी स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है.

चंपई सोरेन को दरकिनार करना सवाल उठाता है

चंपई सोरेन, झारखंड राज्य आंदोलन के एक वरिष्ठ नेता हैं. उन्होंने बिनोद बिहारी महतो जैसे अन्य नेताओं के साथ मिलकर राज्य के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बावजूद इसके, उन्हें उनकी ही पार्टी में नजरअंदाज किया जा रहा है. इससे कई लोगों को लगता है कि सोरेन परिवार अपने हितों को झारखंड के हितों से ऊपर रख रहा है.

चंपई सोरेन ने एक समय पर झारखंड सरकार का नेतृत्व भी किया था. उनका कार्यकाल छोटा था, लेकिन उन्होंने राज्य में स्थिरता लाने और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की. जब हेमंत सोरेन जेल से वापस आए, तो चंपई से पद छोड़ने को कहा गया और हेमंत को फिर से मुख्यमंत्री बनाया गया. इस बदलाव को कई लोगों ने विश्वासघात के रूप में देखा.

सोरेन परिवार पर भाई-भतीजावाद के आरोप

चंपई सोरेन को सत्ता से हटाने से सोरेन परिवार पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगे हैं. हेमंत सोरेन का जेल से वापस आकर तुरंत सत्ता में आना दिखाता है कि परिवार के अंदर सत्ता को लेकर संघर्ष है. यह भी संकेत मिलता है कि पार्टी में अन्य नेताओं की तुलना में परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता दी जा रही है.

सोरेन परिवार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे हैं. इससे जनता में उनकी छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. कई लोग मानते हैं कि परिवार राज्य की सेवा करने के बजाय अपनी शक्ति और धन को बनाए रखने में अधिक रुचि रखता है.

झारखंड के नेतृत्व पर नियंत्रण की लड़ाई

चंपई सोरेन जैसे नेताओं को किनारे करना यह दर्शाता है कि जेएमएम के भीतर सत्ता का संघर्ष जारी है. शिबू सोरेन को झारखंड आंदोलन का प्रमुख चेहरा माना जाता है, लेकिन यह आंदोलन कई नेताओं के सामूहिक प्रयास का परिणाम था. समय के साथ, सोरेन परिवार ने पार्टी पर अपना नियंत्रण बढ़ा लिया है, जिससे अन्य महत्वपूर्ण नेताओं को पीछे धकेला गया है.

जेएमएम में बढ़ता असंतोष

पार्टी के अंदर चल रहे सत्ता संघर्ष को जनता देख रही है. इससे लोगों में नाराजगी बढ़ रही है. जो लोग पहले सोरेन परिवार का समर्थन करते थे, वे अब खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. वे ऐसे नेतृत्व की मांग कर रहे हैं जो राज्य के विकास को प्राथमिकता दे.

चंपई सोरेन जैसे योग्य नेताओं को नजरअंदाज करने से पार्टी की छवि प्रभावित हो रही है. भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों ने जनता का विश्वास कम किया है. लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या सोरेन परिवार भविष्य में झारखंड का सही नेतृत्व कर सकता है.

सत्ता से चिपके रहने की सोरेन परिवार की इच्छा पार्टी और राज्य दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकती है. झारखंड की जनता अब बदलाव चाहती है. सवाल है कि क्या सोरेन परिवार राज्य के हितों को अपने स्वार्थ से ऊपर रखेगा या नहीं. आने वाले चुनावों में इसका जवाब मिल सकता है.

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