महाराष्ट्र की राजनीति में उद्धव ठाकरे का नाम एक मजबूत नेता के रूप में उभरा था, लेकिन अब उनकी स्थिति काफी अलग हो चुकी है. उद्धव ठाकरे, जो कभी शिवसेना के प्रमुख नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे, आज राजनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ गए हैं. इसके पीछे मुख्य वजह उनकी मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा मानी जा रही है, जिसने पूरी राजनीतिक स्थिति को उलट दिया.
शिवसेना, जो महाराष्ट्र की एक बड़ी पार्टी थी और 105 सीटों के साथ सत्ता में थी, अब दो हिस्सों में बंट चुकी है. उद्धव ठाकरे जब मुख्यमंत्री बने, तब उन्होंने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन किया था. लेकिन इस गठबंधन ने शिवसेना की परंपरा और विचारधारा को कमजोर किया. उनके इस कदम ने पार्टी में अंदरूनी विरोध पैदा कर दिया, जिसका नेतृत्व एकनाथ शिंदे ने किया. शिंदे गुट ने बीजेपी का समर्थन पाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया और उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटना पड़ा.
उद्धव ठाकरे का बीजेपी पर आरोप
उद्धव ठाकरे ने हाल ही में दिए गए अपने बयानों में बीजेपी पर आरोप लगाया कि उन्हें धोखा दिया गया और शिंदे गुट को बढ़ावा दिया गया. उनका मानना है कि अगर बीजेपी ने उनका साथ दिया होता, तो वे मुख्यमंत्री बने रहते. लेकिन बीजेपी ने शिंदे का समर्थन किया, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में उनके लिए समस्याएं खड़ी हो गईं.
शिवसेना का विभाजन
शिवसेना का विभाजन उद्धव ठाकरे के लिए सबसे बड़ा झटका था. शिंदे गुट के बीजेपी के साथ जुड़ने से शिवसेना कमजोर हो गई, और उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी में भी अलग-थलग पड़ गए. महाराष्ट्र की राजनीति में शिंदे गुट का बीजेपी के साथ गठबंधन ने उद्धव ठाकरे के लिए नेतृत्व की संभावनाओं को और मुश्किल बना दिया.
कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन
उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के पारंपरिक विचारों को पीछे रखकर कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिलाया था. हालांकि, इस गठबंधन के बावजूद वे अपनी कुर्सी नहीं बचा सके. कांग्रेस और एनसीपी भी उन्हें पूरी तरह समर्थन नहीं दे सके, जिससे उनका मुख्यमंत्री पद गिर गया.
उद्धव ठाकरे की भविष्य की राजनीति
आज की स्थिति में, उद्धव ठाकरे के पास न तो पार्टी का पूरा समर्थन है और न ही वे सत्ता में वापस आ पाने की स्थिति में दिख रहे हैं. महाविकास अघाड़ी के भीतर उनका कद घट चुका है और शिवसेना का बड़ा धड़ा अब उनके नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर रहा है.