वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे: फेल्योर भी जरूरी, तभी आएगा जीत का मजा

नई दिल्ली, 10 सितंबर . वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे पर इस साल की थीम ‘चेंजिंग द नैरेटिव ऑन सुसाइड’ रखी गई है. वर्तमान में तनाव भरे जीवन में लोग इसका शिकार हो रहे हैं. बड़ो से लेकर बच्‍चों की भी आए दिन सुसाइड की खबरें सुनने को मिल जाती है. नैरेटिव ऐसा जिसमें खाली सफलता और सिर्फ सफलता की ही बात न हो बल्कि बताया जाए कि असफलता भी आगे बढ़ने के लिए जरूरी है.

सक्सेस और फेल्योर को लेकर ने आयुष निदेशालय दिल्ली के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (एसएजी) और इहबास इकाई के प्रभारी डॉक्‍टर अशोक शर्मा से बात की.

डॉ. अशोक शर्मा ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍ल्‍यूएचओ) ने लोगों को सुसाइड जैसे विचार से बा‍हर निकालने के लिए इस दिन का चुनाव किया है. डब्‍ल्‍यूएचओ की मानें तो हर साल दुनियाभर में लगभग 7 लाख लोग आत्‍महत्‍या जैसा गंभीर कदम उठाते हैं.

उन्होंने कहा, ”यह जानने की जरूरत है कि ऐसा व्‍यक्ति सामाजिक, मानसिक और शारीरिक पटल पर किस चीज से जूझ रहा है. पहले लोग इस बारे में बात करने से भी घबराते थे, मगर आज के समय में कम से कम हम लोग इस मुद्दे पर खुलकर बात कर पाते हैं, जो बेहद ही जरूरी चीज है.”

डॉ. अशोक ने आगे कहा, ”इसके लिए समाज को आगे आकर इस ओर काम करने की जरूरत है, जिससे हम लोगों के लिए मददगार साबित हो सके. इससे यह होगा कि जब किसी की आलोचना नहीं होगी, समाज का भरपूर समर्थन मिलेगा तो व्‍यक्ति गलत राह को न चुनते हुए सही रास्‍ते पर रहेगा.”

आगे कहा कि तभी इस समस्‍या पर बात करने के लिए एक दिन निर्धारित किया गया है कि लोग आगे आकर इस पर बात करें, और प्रतीज्ञा लें कि हमारे आस पास जो भी इस परेशानी से जूझ रहा है तो उससे खुलकर बात करें.

इस समस्‍या पर परिवार क्‍या सहयोग दे सकता है? इस पर डॉ. अशोक ने कहा, ”कई बार रिश्‍तों में आई दिक्‍कतों या कभी पैसे को लेकर आई समस्‍या के बारे में परिवार का एक सदस्‍य जरूरत से ज्‍यादा परेशान रहता है. ऐसे में कई बार परिवार के ही लोग इसे समझ नहीं पाते, मगर ऐसे में परिवार को चहिए कि उस व्‍यक्ति को अपना पूरा सपोर्ट दें ,ताकि वह उस दायरे से बाहर आ सके.”

आगे कहा, ” जिंदगी में तो उतार- चढ़ाव तो हर एक व्‍यक्ति के जीवन में आते हैं. कई बार हम लोग इससे बाहर भी आ जाते है. लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्‍कत यह आती कि हम देख रहे हैं कि हमारे परिवार का एक सदस्‍य बहुत परेशान है इसके बावजूद भी हम उसका साथ नहीं दे रहे, यह गलत बात है.”

उन्होंने कहा कि अगर परिवार को लग रहा है कि किसी सदस्‍य के मन में गलत विचार आ रहे हैं और उसका व्‍यवहार भी बदला-बदला लग रहा है तो परिवार को चाहिए कि वह उस पर अपनी नजर बनाकर रखें.

बच्‍चों में आ रहे डिप्रेशन को लेकर उन्‍होंने कहा, ”जिस तरीके से हम किसी बीमारी के कारण को ढूंढते हैं उसी तरह हमें बच्‍चे के तनाव के पीछे का कारण जानने की जरूरत है. पेरेंट्स को चहिए कि वह अपने बच्‍चे को फेल होने के लिए भी तैयार करें. बच्‍चों पर उनके करियर को लेकर बिल्‍कुल भी दबाव न बनाएं, उनसे उम्‍मीदें तो बिल्‍कुल न बांधें.”

”जब बच्‍चे परिवार की उम्‍मीदों पर खरे नहीं उतर पाते तो, कई बार पेरेंट्स बच्‍चों का सुनाना शुरू कर देते कि हमने तुम पर कितना पैसा लगाया,उसके बाद भी तुम कुछ नहीं कर पाएं, जिससे बच्‍चे के मन में जीवन को खत्‍म करने जैसे विचार आने लगते हैं.”

उन्‍होंने सलाह देते हुए कहा कि ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्‍चों के साथ एक खास तरह का रिश्‍ता कायम करने की जरूरत है, उससे उसकी परेशानी के बारे में बात करने की जरूरत है, जिससे उसे लगे कि मैं अकेला नहीं हूं जो इस फेलियर का सामना कर रहा हूं.

एमकेएस/केआर