कोलकाता, 8 सितंबर . तृणमूल कांग्रेस से राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजा है. इसे लेकर टीएमसी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि हम पत्र के बड़े अंश से सहमत हैं.
कुणाल घोष ने कहा कि जवाहर सरकार देश के सबसे अच्छे नौकरशाही में एक रहे हैं. पश्चिम बंगाल में सम्मानित नौकरशाही में उनका नाम उच्च स्थान पर रहेगा. उनका फैसला व्यक्तिगत है. उसके ऊपर मैं कोई टिप्पणी नहीं देना चाहता हूं. उन्हें कोई भी फैसला लेने का पूरा अधिकार है.
उन्होंने कहा कि मैं बस जवाहर सरकार के पत्र में उपयोग किए गए कंटेट पर कहना चाहूंगा. हम उनके पत्र में लिखे एक बड़े अंश के साथ सहमत हैं. हम लोग भी सिविल सोसायटी के पक्ष में है. हमें उम्मीद है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सिविल सोसायटी के सवाल और उनकी नाराजगी को बेहतर तरीके से सुलझाएंगी. हम पार्टी में रहकर सुधार पर चर्चा करेंगे.
बता दें कि जवाहर सरकार ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र लिखकर राजनीति से दूर होने की बात कही है. उन्होंने लिखा, आपने मुझे पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में सांसद के रूप में चुनकर सम्मानित किया है. राज्य की विभिन्न समस्याओं को केंद्र सरकार के ध्यान में लाने का अवसर देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. लेकिन काफी सोच-विचार के बाद मैंने सांसद पद से इस्तीफा देने और खुद को राजनीति से पूरी तरह अलग करने का फैसला किया है.
उन्होंने पत्र में लिखा, मेरा विश्वास करें कि इस समय हम राज्य की आम जनता में जो स्वतः स्फूर्त आंदोलन और गुस्से का विस्फोट देख रहे हैं, उसका मूल कारण कुछ पसंदीदा नौकरशाहों और भ्रष्ट व्यक्तियों का बाहुबल है. मैंने अपने जीवन में सरकार के खिलाफ इतना गुस्सा और अविश्वास कभी नहीं देखा. यहां तक कि सरकार जब कोई जानकारी या सच्चा बयान लोगों के सामने रखती है, तो भी लोग उस पर विश्वास नहीं करते.
मैंने पिछले महीने आरजी कर अस्पताल की घृणित घटना के खिलाफ हर किसी की प्रतिक्रिया को धैर्यपूर्वक देखा है. सरकार अब जो दंडात्मक कदम उठा रही है, उसमें देरी हुई है. सभी का मानना है कि अगर भ्रष्ट डॉक्टरों के गिरोह को तोड़ने के लिए समय पर निर्णय लिया गया होता और इस जघन्य घटना में शामिल उच्च पदस्थ अधिकारियों को तुरंत कड़ी सजा दी गई होती, तो राज्य में स्थिति बहुत पहले सामान्य हो गई होती.
मेरा मानना है कि जो लोग इस आंदोलन में उतरे हैं, वे विरोध कर रहे हैं, इसलिए राजनीतिक नाम का इस्तेमाल कर इस आंदोलन को रोकना उचित नहीं होगा. बेशक विपक्षी दल इस आंदोलन से अपना हित साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आए दिन सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे आम छात्र और लोग इन पार्टियों को आंदोलन के अंदर आने नहीं दे रहे हैं. उनमें से किसी को भी राजनीति पसंद नहीं है, वे केवल मुकदमे और सजा की मांग कर रहे हैं.
अगर हम इस आंदोलन का निष्पक्ष विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह विरोध न केवल ‘अभय’ के पक्ष में है, बल्कि राज्य सरकार और सत्तारूढ़ दल के खिलाफ भी है. इसलिए, तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है, अन्यथा सांप्रदायिक ताकतें इस राज्य पर कब्जा कर लेंगी.
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एसएम /