दुर्गा पूजा चंदा : कलकत्ता हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, ऑडिट के लिए सरकार से गुहार लगाएं

कोलकाता, 5 सितंबर . एक याचिकाकर्ता ने राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा के अवसर पर दान की राशि में हुई वृद्धि के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी. कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह बंगाल सरकार को एक प्रतिवेदन सौंपे, जिसमें विभिन्न सामुदायिक पूजा समितियों को दिए जाने वाले वार्षिक दान के उपयोग का उचित ऑडिट कराने की मांग की जाए.

जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को ज्ञापन सौंपे जाने के बाद ही मामले की सुनवाई जल्द से जल्द शुरू हो सकती है.

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उन्होंने सुना है कि इस साल कई समितियों ने राज्य सरकार का दान लेने से इनकार कर दिया है.

सामुदायिक पूजा समितियों को राज्य सरकार द्वारा दान देने का यह चलन साल 2011 में शुरू हुआ था, जब राज्य में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई थी, जिसने 34 साल से चली आ रही वाम मोर्चा शासन को समाप्त कर दिया.

शुरुआत में, राज्य सरकार हर समिति को सिर्फ 25 हजार रुपये देते थी. इस राशि को धीरे-धीरे बढ़ाकर 85 हजार रुपये कर दिया गया. मुख्यमंत्री ने पहले ही घोषणा कर दी है कि अगले साल राशि बढ़ाकर 1 लाख रुपये कर दी जाएगी.

हालांकि, इस साल कई पूजा समितियों ने कोलकाता स्थित सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक जूनियर डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के विरोध में राज्य सरकार का दान लेने से इनकार कर दिया है.

समितियों के पदाधिकारियों का कहना है कि इस फैसले के कारण उन्हें कुछ त्योहार-संबंधी खर्चों में कटौती करनी पड़ सकती है, लेकिन वे ऐसा करेंगे.

मालदा जिले के एक थिएटर समूह ने थिएटर मेला आयोजित करने के लिए राज्य सरकार के दान को अस्वीकार कर दिया. व्यक्तिगत रूप से, कुछ नाटककारों और अभिनेताओं ने इस घटना का विरोध करने के लिए राज्य सरकार द्वारा दिए गए पुरस्कार और नकद पुरस्कार को वापस करने की घोषणा की है.

अपनी जनहित याचिका में, सौरव दत्ता ने इस दान के उद्देश्य के लिए रखे जाने वाले धन के स्रोत पर सवाल उठाया है और एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा उचित ऑडिट की मांग की है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान क्लबों को दिए गए दान का संबंधित क्लब अधिकारियों द्वारा कैसे उपयोग किया गया है.

याचिकाकर्ता ने क्लबों को साल-दर-साल दान राशि बढ़ाने के औचित्य पर भी सवाल उठाया, जब राज्य सरकार अपने कर्मचारियों को बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता या अन्य आवश्यक व्यय का भुगतान करने में असमर्थ थी.

पीएसके/जीकेटी