रावेनशॉ विश्वविद्यालय का नाम बदलने के मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष में वाकयुद्ध

भुवनेश्वर, 5 सितंबर . ओडिशा विधानसभा में गुरुवार को रावेनशॉ विश्वविद्यालय का नाम बदलने के मुद्दे पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी बीजद के सदस्यों के बीच वाकयुद्ध हो गया.

कुछ दिन पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के इस संबंध में बयान के बाद विवाद खड़ा हो गया था. बीजद नेता ब्योमकेश रे ने शून्यकाल के दौरान सदन में यह मुद्दा उठाया और छात्रों में बढ़ते असंतोष के मद्देनजर इस मुद्दे पर ओडिशा सरकार के रुख की पुष्टि करने के लिए मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी से बयान देने की मांग की.

बीजद नेता ने कहा कि ओडिशा के तत्कालीन आयुक्त टीई रावेनशॉ के नाम पर स्थापित रावेनशॉ विश्वविद्यालय 156 वर्षों से राज्य में आधुनिक शिक्षा के विकास में एक मील का पत्थर साबित हुआ है.

उन्होंने आगे बताया कि तत्कालीन ओडिशा आयुक्त टीई रावेनशॉ 1866 में आए विनाशकारी अकाल से कुछ महीने पहले ही यहां आये थे. बीजद विधायक ने कहा कि रावेनशॉ ने स्कूलों में बांग्ला के बजाय ओड़िया भाषा के प्रयोग पर विशेष जोर दिया था.

इस बीच, कांग्रेस नेता सोफिया फिरदौस ने कहा कि रावेनशॉ विश्वविद्यालय ओडिशा का एक बहुत ही प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थान है, जिसके पास बहुत से महान और बुद्धिमान पूर्व छात्र हैं. उन्होंने सरकार से नाम बदलने के विवाद पर अपना रुख स्पष्ट करने का भी आग्रह किया.

पुराने छात्रों के साथ-साथ वर्तमान में संस्थान में पढ़ रहे छात्र और बुद्धिजीवी इस मामले पर सीएम माझी से बयान की मांग कर रहे हैं. हमने आज भी इस संबंध में सीएम से स्पष्टीकरण मांगा है. जो लोग रावेनशॉ यूनिवर्सिटी का नाम बदलना चाहते हैं, वे एक गैर-मुद्दे को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

ब्योमकेश रे ने गुरुवार को सदन के बाहर पत्रकारों से कहा, “हम संस्थान से संबंधित ज्यादा महत्वपूर्ण मामलों पर ध्यान देने के बजाय एक गैर-मुद्दे को मुद्दा बनाने के इस कदम का विरोध करते हैं.”

उन्होंने चेतावनी दी कि यदि रावेनशॉ विश्वविद्यालय का नाम बदलने के लिए कोई कदम उठाया गया तो छात्र आंदोलन तेज हो जाएगा.

बीजद के आरोपों का जवाब देते हुए बीजेपी विधायक इरासिस आचार्य ने कहा, “बीजद पार्टी को अभी भी एक अन्य राज्य के आईएएस अधिकारी के शासन की आदत नहीं छूटी है. जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था. इसी तरह, जब ओडिया (ओडिशा) के लाखों लोग अकाल में मर रहे थे, तब रावेनशॉ 70 दिनों की छुट्टी पर चले गए थे.”

केंद्रीय शिक्षा मंत्री के बयान का हवाला देते हुए आचार्य ने कहा कि किसी के व्यक्तिगत बयान को विधानसभा में उठाना उचित नहीं है.

बता दें कि शिक्षा मंत्री प्रधान ने हाल ही में मीडियाकर्मियों से कहा था कि ओडिशा के लोगों के साथ-साथ बुद्धिजीवियों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हमें रावेनशॉ के नाम पर एक संस्थान की जरूरत है, जिनके कार्यकाल के दौरान ओडिशा में 1866 में विनाशकारी अकाल पड़ा था.

एफजेड/जीकेटी