‘गुनाहों का देवता’ को गुजरे 27 बरस, एक रचनाकार जो हर चंदर और सुधा का बना संबल

नई दिल्ली, 4 सितंबर . सर्दियों की हल्की धूप में ना ठंडक और ना गर्मी का अहसास, एक पहाड़ और हर तरफ हरियाली, कानों में कोयल की कूक, सब कुछ सपनों की दुनिया जैसी… अचानक सपना टूटता है, आंखें खुलती है और नजरें किताब के पन्ने पर पड़ती है.

आंखों से बाहर निकलने को बेताब आंसू चंदर और सुधा को दिल से महसूस कर रहे हैं. अगर आपने कभी भी ‘गुनाहों का देवता’ पढ़ी होगी, आपके दिल और दिमाग में भी ऐसी भावनाएं उमड़ती-घुमड़ती होंगी.

‘गुनाहों का देवता’ अपने समय की सटीक कहानी है, जिसे पढ़ते हुए आप खुद को चंदर या सुधा के रूप में महसूस करने लगते हैं. इस मास्टर-पीस को लिखने वाले मशहूर शख्स का नाम है धर्मवीर भारती. आज उनको गुजरे 27 साल बीत चुके हैं. लेकिन, कभी नहीं लगा कि भारती जी हम सभी के सामने नहीं हैं. ‘गुनाहों का देवता’ के रूप में उन्होंने अपनी मौजूदगी हमेशा के लिए हम सबके बीच मुमकिन कर दी है.

धर्मवीर भारती का जन्म 25 सितंबर 1926 को इलाहाबाद में हुआ. इलाहाबाद में ही उच्च शिक्षा पाई. छात्र जीवन में ही पत्रकारिता से जुड़ गए. पढ़ाने का काम भी किया. ‘परिमल’ संस्था के साथ उनकी सक्रिय भागीदारी रही. बाद में ‘धर्मयुग’ पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में पत्रकारिता के शिखर पुरुष बनकर खुद को स्थापित किया. भारती जी प्रतिष्ठित साहित्यकार होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और अनुवादक भी थे.

आधुनिक हिंदी साहित्य में उन्होंने अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया. लेकिन, ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास हिंदी साहित्य जगत में मील का पत्थर माना जाता है. इस उपन्यास को पढ़ने वाला हर शख्स कहीं ना कहीं उसके पात्रों का अक्स खुद में देखता है. इस उपन्यास ने भारती जी को देश-दुनिया में प्रसिद्धि दिलाई. उनकी ख्याति इतनी हुई कि अंग्रेजी लव स्टोरी के फैन भी ‘गुनाहों का देवता’ की तारीफ करने से खुद को नहीं रोक सके.

‘गुनाहों का देवता’ मुख्य रूप से चंदर और सुधा के बीच अनकहे रोमांस की कहानी है. इस कहानी में भारत के शहरी मध्यम वर्ग में प्रेम के विभिन्न आयामों, युवाओं के आदर्श और दूसरे पहलुओं का जिक्र शानदार तरीके से किया गया है. उपन्यास की प्रस्तावना में लेखक कहते हैं, “इस उपन्यास को लिखते समय मुझे उस भावना का अनुभव हुआ जो किसी व्यक्ति को निराशा के क्षणों में होती है. जब वह पूरे विश्वास के साथ प्रार्थना करता है. ऐसा लगता है जैसे वही प्रार्थना मेरे हृदय में बस गई है और मैं अभी भी उसे दोहरा रहा हूं.”

उपन्यास चंदर और सुधा की भावुक प्रेम कहानी बताता है. इसमें देश की आजादी और विभाजन के बाद का इलाहाबाद है. चंदर, सुधा के करीब है. दोनों के बीच गहरा और मजबूत रिश्ता है. दोनों के रिश्ते के उतार-चढ़ाव और अंजाम को बेहद शानदार तरीके से प्रस्तुत किया गया है. धर्मवीर भारती के लिए ‘गुनाहों का देवता’ उत्कृष्ट रचना है. इसने बॉलीवुड से लेकर टीवी इंडस्ट्री को भी अपनी ओर ना सिर्फ आकर्षित किया, अपना फैन भी बना लिया.

साल 1969 में ‘एक था चंदर, एक थी सुधा’ नाम की फिल्म की शूटिंग शुरू हुई और जल्द ही यह बंद भी हो गई. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी ने मुख्य भूमिका निभाई थी. यह फिल्म ‘गुनाहों का देवता’ उपन्यास का हिंदी रूपांतरण था. कहा जाता है कि इस फिल्म के बंद होने के बाद अमिताभ और जया ने एक साथ आगे बढ़ने का फैसला किया था. इसके बाद जया भादुड़ी ने जया बच्चन बनने का फैसला कर लिया था.

‘गुनाहों का देवता’ के अलावा धर्मवीर भारती की रचनाएं ‘ठंडा लोहा’, ‘सात गीत वर्ष’, ‘कनुप्रिया’, ‘सपना अभी भी’, ‘अंधा युग’, ‘मुर्दों का गांव’, ‘स्वर्ग और पृथ्वी’, ‘चांद और टूटे हुए लोग’, ‘बंद गली का आखिरी मकान’, ‘सूरज का सातवां घोड़ा’, ‘ग्यारह सपनों का देश’ भी काफी लोकप्रिय हैं. धर्मवीर भारती ने लेखन की हर विद्या में उत्कृष्ट रचनाएं दुनिया के सामने रखी, जिसे बेहद प्यार मिला. उन्हें पद्मश्री, भारत भारती सम्मान, महाराष्ट्र गौरव, व्यास सम्मान समेत कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हुए.

भारती जी जीवन के आखिरी समय तक सृजनशील रहे. उनका निधन 4 सितंबर 1997 को हुआ था. लेकिन, धर्मवीर भारती सिर्फ प्रेम को महसूस कर शब्दों के रूप में पन्नों पर नहीं उतारते थे. उनके तेवर में सिस्टम और सरकार से सवाल करना भी शामिल था. अगर आपको यकीन नहीं होता है तो उनकी लिखी इन लाइन्स को पढ़िए, “चेक बुक हो पीली या लाल, दाम सिक्के हों या शोहरत, कह दो उनसे, जो खरीदने आए हों तुम्हें, हर भूखा आदमी बिकाऊ नहीं होता है.”

एबीएम/एफजेड