नई दिल्ली, 31 अगस्त . पुणे का एक बच्चा जिसे बचपन में आम खाने का बड़ा शौक था. इस शौक ने उसका झुकाव टेनिस की ओर बढ़ाया. वह बच्चा जो बॉल बॉय के तौर पर खिलाड़ियों को खेलते देख मुग्ध हो जाता था, उसने बड़े होकर डेविस कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया. बाद में एक कोच के तौर पर उल्लेखनीय काम भी किया. और इस शख्सियत का नाम है नंदन बाल….1970 और 80 के दशक के भारतीय टेनिस लीजेंड, जो 1 सितंबर को अपना 65वां जन्मदिन मना रहे हैं.
नंदन बाल की टेनिस की शुरुआत करने की कहानी दिलचस्प है. उनके पिता महाराष्ट्र में परभणी नाम की एक छोटी सी जगह पर एलआईसी में काम करते थे. नंदन गर्मियों की छुट्टियों में पिता से मिलने के लिए जाते थे. बचपन में उनको आम खाने का बड़ा शौक था. जिसके चलते उनका वजन इतना बढ़ गया कि पिता को बेटे की फिटनेस की चिंता सताने लगी. ऐसे में ही एक बार 1971 की गर्मियों की छुट्टियों में, वह पिता से मिलने गए, तो उन्होंने नंदन को फिटनेस के लिए ऑफिसर क्लब में टेनिस खेलने के लिए कहा. इस तरह से नंदन बाल के लिए टेनिस की शुरुआत फिटनेस के कारण हुई थी.
फिटनेस के लिए शुरू हुआ टेनिस एक शौक और एक जुनून बन गया. उनके पिता पुरुषोत्तम बल राज्य और विश्वविद्यालय स्तर के टेनिस खिलाड़ी थे. मां, माणिक बल, एक राष्ट्रीय स्तर की प्रसिद्ध बैडमिंटन खिलाड़ी थीं. इस वजह से भी टेनिस उनके परिवार का हिस्सा बन गया था. तब पुणे में डॉ. जी.ए. रानाडे, जिन्हें नंदन बाल अपना “गॉडफादर” मानते हैं, ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. नंदन बाल के पिता से टेनिस को गंभीरता से लेने के लिए बात की गई.
70 के दशक की शुरुआत में, पुणे ने दो बार डेविस कप की मेजबानी की थी. एक बार 1970 में जर्मनी के खिलाफ और फिर 1974 में रूस के खिलाफ. इन दो इवेंट ने नंदन बाल पर गहरा प्रभाव छोड़ा था. वह डेविस कप के मैचों में बॉल बॉय का काम करते थे और खिलाड़ियों को खेलते देखा करते थे. वह खिलाड़ियों के जुनून के बीच राष्ट्रगान बजता देखते तो रोंगटे खड़े हो जाते थे. 1978 तक वह इन चीजों से इतना प्रभावित हो चुके थे कि एक खिलाड़ी के तौर पर इन पलों को जीने की ठान चुके थे.
1976 में अमेरिका में टॉप कोच वेल्बी वैन हॉर्न से मिलना नंदन बाल के करियर का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था. अमेरिका में कोचिंग की लागत वहन करना मुश्किल था, इसलिए नंदन बाल ने वहां खुद भी कोचिंग शुरू कर दी. उन्होंने हॉर्न की अकादमी में 7 साल बिताए. हॉर्न से उन्होंने कोचिंग के गुर भी सीखे. इसके अलावा उनके पास टेनिस सिखाने की कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी. यह बात उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान स्वीकार की थी.
नंदन बाल के करियर का सबसे बेहतरीन पल क्या रहा? उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनके करियर में दो पल सबसे शानदार कहे जा सकते हैं. एक था 1978 में, जब उन्होंने वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स के फाइनल्स में खेला. दूसरा बेहतरीन क्षण 1979 में था, जब वह विंबलडन पुरुष फाइनल क्वालीफाइंग राउंड में खेल रहे थे. वह दो सेट्स में 2-1 से आगे थे और चौथे गेम में बढ़त भी बना ली थी. हालांकि पांच सेटों के गेम में उनको आयरलैंड के सीन सोरेंसन से हार मिली थी, लेकिन यह मैच उनके दिल के बहुत करीब रहा. इस मैच का विजेता विंबलडन के सेंटर कोर्ट पर टेनिस सनसनी ब्योर्न बोर्ग के खिलाफ मुख्य ड्रा में खेलता.
नंदन बाल ने दो डेविस कप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है. इसके अलावा वह 1982 के एशियन गेम्स में सिल्वर मेडल जीत चुके हैं. वह एक सफल कोच भी रह चुके हैं, जिन्होंने डेविस कप और फेड कप टीम को कोचिंग दी. नंदन बाल को साल 2020 में महाराष्ट्र राज्य लॉन टेनिस एसोसिएशन द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. इसी साल उनको खेल में लाइफटाइम अचीवमेंट ध्यानचंद अवार्ड दिया गया था. नंदन की दो बेटियां हैं. छोटी बेटी ने टेनिस कोचिंग को अपनाया है. वह टेनिस अकादमी में पिता की सहायता भी करती है. जबकि बड़ी बेटी एक इंजीनियर है.
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एएस/केआर