नई दिल्ली, 31 अगस्त . इंसान आदिकाल से अपने मन की बात कहने को आतुर रहा है. इसके लिए उसने कभी चित्र बनाए, कभी कलम के भाव कागज पर रचे, तो कभी दीन-दुखियों की सेवा की. मन की व्याकुलता और संवदेनशीलता तब खूब पनपती है, जब उसे शांत और व्यवस्थित माहौल मिले. मन के ऐसे ही एक तरंग का नाम है, कश्मीरी लाल जाकिर. जिनकी कलम में दम था और समाज के लिए कुछ करने की ख्वाहिश भी खूब थी.
जाने-माने लेखक और साहित्यकार कश्मीरी लाल जाकिर हरियाणा उर्दू अकादमी के सचिव रहे और भारत सरकार एवं कई निजी संस्थाओं को अपनी सेवाएं दी . उनका जन्म 7 अप्रैल 1919 को पश्चिमी पंजाब के बेगाबनियान गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है.
कश्मीरी लाल जाकिर की शुरुआती शिक्षा रियासत पुंछ और श्रीनगर के स्कूलों में हुई. इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से बीए और एमए किया. करीब 80 पुस्तकें लिखी, जिनमें उपन्यास, नाटक, लघु कथाएं हैं. उन्होंने प्रौढ़ शिक्षा, श्रमिक शिक्षा, पर्यावरण और जनसंख्या शिक्षा पर भी कई पुस्तकें लिखी. इनमें ‘खजुराहो की एक रात’, ‘जाकिर की तीन कहानियां’, ‘हथेली पर सूरज’, ‘अंगूठे का निशान’, ‘उदास शाम के आखिरी लम्हे’ समेत कई प्रसिद्ध और पुरस्कृत किताबें हैं. एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया था कि अगर वह कलमकार नहीं होते तो देश सेवा के लिए आर्मी में शामिल हो जाते.
प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत कश्मीरी लाल जाकिर ने केंद्र शासित प्रदेश चडीगढ़ की एक झुग्गी बस्ती को शिक्षा प्रसारण अभियान के लिए गोद भी लिया था. इसके अलावा उन्होंने युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी को कम करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए करियर संबंधी मार्ग दर्शन के साथ-साथ अनिवार्य सहायता भी प्रदान की. कश्मीरी लाल जाकिर भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संस्था ‘श्रमिक विद्यापीठ’ के अध्यक्ष भी रहे और इस नाते बेरोजगार युवाओं की सहायता भी करते थे. आज भी कई लोग ऐसे हैं, जो उनकी लेखनी से मुतासिर हैं और उनके व्यक्तिगत जीवन से प्रेरित हैं.
हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में लिखने वाले कश्मीरी लाल जाकिर को कई जाने-माने पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा जा चुका है. साल 1986 में उन्हें भारत के राष्ट्रपति ने ‘गालिब सम्मान’ दिया. 1991 में ‘अंतरर्राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ पर प्रख्यात ‘राष्ट्रीय नेहरू शिक्षा सम्मान’ दिया गया. साहित्य और समाजसेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए संघशासित क्षेत्र में गणतंत्र दिवस पर विशेष रूप से सम्मानित किया गया. कश्मीरी लाल जाकिर ने दहेज प्रथा, बंधुआ मजदूरी, महिला समस्या और राष्ट्रीय एकता जैसे ज्वलत मुद्दों पर अपनी लेखिनी का सूक्ष्म और आध्यात्मिक प्रयोग भी किया. उनकी कई पुस्तकें भारतीय भाषाओं में ही नहीं, बल्कि विदेशी भाषाओं में अनुवादित हुई.
जाकिर ने अपनी साहित्यिक यात्रा का आरंभ तो शायरी से किया था. मगर, धीरे-धीरे वह कथा लिखने लगे. विभाजन के बाद देश में भड़की हिंसा और घाटी की दर्दनाक स्थिति ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया. जिसके बाद उन्होंने अपनी पीड़ा को कहानियों का अहम हिस्सा बनाया. उनकी पुस्तकें ‘जब कश्मीर जल रहा था’, ‘खून फिर खून है’, ‘एक लड़की भटकी हुई’ उसी रचनात्मक पीड़ा की अभिव्यक्ति है.
उन्हें अपने परिवार के साथ समय बिताने का कम ही अवसर मिलता था. उन्होंने कला जगत की कई महान हस्तियों के बीच रहकर अविस्मरणीय पलों की जीया और कई मित्र बनाएं.
कश्मीरी लाल जाकिर को हरियाणा सरकार ने ‘फ़ख़्र-ए-हरियाणा’ सम्मान से नवाजा. इसके अलावा भारत सरकार ने उन्हें भारतीय साहित्य में योगदान के लिए 2006 में चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया था. कश्मीरी लाल जाकिर का 31 अगस्त 2016 को 97 साल की आयु में निधन हो गया था.
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एसके/