राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस: जानें इस दिन का इतिहास और क्यों है ये ‘आत्मनिर्भर भारत’ का प्रतीक?

नई दिल्ली, 30 अगस्त . भारत देश के आर्थिक परिदृश्य में लघु उद्योगों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारत कृषि प्रधान देश है, जो कहीं न कहीं मॉडर्न युग में लघु उद्योग की महत्ता भी बढ़ती जा रही है. स्वतंत्रता से भी पहले लघु उद्योग भारत की पहचान रही है. यह उद्योग आजादी के पहले से ‘आत्मनिर्भर भारत’ का प्रतीक है.

राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस हर साल ’30 अगस्त’ को लघु उद्योगों को बढ़ावा देने और बेरोजगारों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से मनाया जाता है. भारत एक विकासशील देश है, और आर्थिक रूप में जमीनी स्तर पर मजबूती के लिए लघु उद्योग की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. सरकार ने समय-समय पर इन उद्योगों के लिए कई लाभदायक योजनाएं लागू की, जिसे लोगों का झुकाव इसकी ओर बना रहे.

आसान शब्दों में समझे तो वे उद्योग, जो छोटे पैमाने पर किए जाते हैं तथा सामान्य रूप में चलाए जाते हैं. जिनमें 10 से 50 लोग मजदूरी के बदले में काम करते हों, लघु उद्योग के अंतर्गत आते हैं. यह दिन भारत के विकास, रोजगार पैदा करना और मार्केट में कुछ नया और अलग लाना, इन तमाम पहलुओं में छोटे उद्योगों के योगदान पर प्रकाश डालता है, जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ के रूप में उनकी स्थिति को बड़ी पहचान देता है.

राष्ट्रीय लघु उद्योग दिवस की शुरुआत 2001 में हुई थी. इस साल भारत सरकार की ओर से लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए व्यापक नीतिगत बदलाव की शुरुआत की गई थी. इस दिन का महत्व देश में बढ़ रही बेरोजगारी को कम करना और युवाओं को लघु उद्योगों के बारे में जागरूक करना है. ताकि आगे चलकर लोग लघु उद्योग के महत्व को समझ सके और इसके विकास में अपना योगदान दे सकें.

एमएसएमई के विकास आयुक्त की वेबसाइट पर मौजूद डेटा के अनुसार वर्तमान में देश में 1,05,21,190 लघु उद्योग इकाइयां कार्यरत है. इनमें करीबन 55 फीसदी यूनिट ग्रामीण क्षेत्र में स्थित है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि लघु उद्योगों के राज्यवार प्रसार में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है. जबकि आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्य में भी इसका प्रसार तेजी से हुआ है.

एएमजे/केआर