भाग्यश्री साठे, पीवी सिंधु, भारत की दो महिला खिलाड़ी, जिन्होंने 28 अगस्त को दर्ज की खास उपलब्धियां

नई दिल्ली, 28 अगस्त . भारतीय खेल इतिहास में 28 अगस्त का दिन काफी महत्वपूर्ण है. इस दिन, दो भारतीय महिला खिलाड़ियों ने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से देश का नाम रोशन किया. भाग्यश्री साठे ने जहां 1986 में शतरंज में ग्रैंडमास्टर बनकर भारत की पहली महिला ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया तो इसके 29 साल बाद पी.वी. सिंधु ने बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था.

भाग्यश्री ने केवल 12 वर्ष की उम्र में शतरंज खेलना शुरू किया था और वह उस तरह का शतरंज था जो हम सभी अपने भाई-बहनों और माता-पिता के साथ खेलते हैं. यानी टाइम पास करने के लिए और अपने आनंद के लिए. यह उनके पिता थे जिन्होंने उन्हें शतरंज खेलना सिखाया और जब बाद में भाग्यश्री ने उन्हें भी हरा दिया तो उन्होंने इस खेल को और गंभीरता से लेना शुरू कर दिया.

12वीं कक्षा के बाद, उन्होंने शतरंज को अपने करियर विकल्प के रूप में लेने का फैसला किया और इसे गंभीरता से खेलना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने शतरंज में कमाल का प्रदर्शन करते हुए भारत की महिला चैंपियनशिप पांच बार (1985-1994) जीती. उन्होंने नौ शतरंज ओलंपियाड में भारत का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने 28वीं ‘वाईएमसीए नेशनल बी महिला शतरंज चैंपियनशिप’ में बहुप्रतीक्षित जीत हासिल की थी, जहां उन्हें ‘शतरंज ग्रैंडमास्टर’ का खिताब मिला. इसके अलावा, उन्होंने 1991 में एशियाई महिला चैंपियनशिप जीती, 1986 में पद्म श्री, 1987 में अर्जुन पुरस्कार से लेकर उन्होंने एक शानदार करियर हासिल किया.

28 अगस्त के दिन पीवी सिंधु के नाम भी खास उपलब्धि दर्ज है. पीवी सिंधु जिनका पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है, ने भारत को बैडमिंटन के विश्व मानचित्र पर स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है. राष्ट्रीय स्तर के वॉलीबॉल खिलाड़ियों की बेटी सिंधु ने आठ साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया. भारतीय बैडमिंटन के दिग्गज पुलेला गोपीचंद के मार्गदर्शन में, उनकी प्रतिभा निखरने लगी और उन्होंने जूनियर स्तर पर कई खिताब जीते.

उन्होंने 2014 में कॉमनवेल्थ गेम्स में महिला सिंगल्स में कांस्य पदक जीता और उसी साल वह उस टीम का भी हिस्सा थीं जिसने वर्ल्ड विमेंस टीम चैंपियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया था. सिंधु ने 2016 के रियो ओलंपिक में इतिहास रचते हुए सिल्वर मेडल जीता था. वह फाइनल में स्पेन की कैरोलिना मारिन से हार गईं थी, लेकिन उनका सिल्वर मेडल भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि साबित हुआ. वह ओलंपिक में बैडमिंटन में सिल्वर मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

यहां से पीवी सिंधु एक लीजेंड बन चुकी थीं. अगले साल यानी 2017 में उन्होंने 28 अगस्त के ही दिन वर्ल्ड चैंपियनशिप में फिर से सिल्वर मेडल जीता था. सिंधु के लिए यह उपलब्धि काफी खास थी क्योंकि वह पहली बार वर्ल्ड चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंची थीं. उस ऐतिहासिक फाइनल में, उनको अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्वी जापान की नोजोमी ओकुहारा से हार मिली थी.

पीवी सिंधु 2018 में फिर से फाइनल में पहुंचीं. इस बार कैरोलिना मारिन ने उनको हराया. सिंधु को फिर से सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा. आखिरकार 2019 में गोल्ड मेडल का तिलिस्म भी टूट गया. यह पीवी सिंधु का लगातार तीसरा विश्व चैंपियनशिप फाइनल था. इस बार उन्होंने ओकुहारा को 38 मिनट में हराकर विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती. वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय बनी थीं. सिंधु ने टोक्यो ओलंपिक 2020 में भी कांस्य पदक जीता है.

एएस