ताइपे, 25 अगस्त . ताइवान के विदेश मंत्रालय ने रविवार को बताया कि इस सप्ताह टोंगा में प्रशांत द्वीप देशों के सम्मेलन में देश के उप विदेश मंत्री हिस्सा लेंगे.
चीन और अमेरिका इस क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
ये क्षेत्र ताइपे और बीजिंग के बीच प्रतिस्पर्धा का कारण भी है. चीन उन देशों से दूरियां बना रहा है, जो चीन के दावे वाले ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध रखते हैं.
ताइवान के विदेश मंत्रालय ने बताया कि उप विदेश मंत्री टीएन चुंग-क्वांग अपने तीन प्रशांत क्षेत्रों के सहयोगियों के साथ शिखर सम्मेलन करेंगे ताकि उनके और अन्य ‘समान विचारधारा वाले देशों’ के साथ साझेदारी को मजबूत किया जा सके. इस बात से उनका इशारा अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों की ओर था.
जनवरी में, लाई चिंग ते के ताइवान के नए राष्ट्रपति के रूप में चुनाव जीतने के तुरंत बाद, नाउरू ने ताइपे से बीजिंग के साथ संबंध स्थापित कर लिए, जिसके बारे में ताइवान की सरकार ने कहा कि यह चीन के निरंतर दबाव अभियान का हिस्सा था.
तीन देश – पलाऊ, तुवालु और मार्शल द्वीप- ताइवान के साथ बने हुए हैं.
2018 में नाउरू, जो तब भी ताइवान का सहयोगी था, ने प्रशांत द्वीप समूह फोरम में अपनी बारी से पहले बोलने के लिए ‘अहंकारी’ चीन की निंदा की.
ताइवान ने 1993 से ‘ताइवान/चीन गणराज्य’ के नाम से विकास भागीदार के रूप में इस फोरम में भाग लिया है.
चीन का कहना है कि लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान उसके प्रांतों में से एक है, जिसे राज्य-से-राज्य संबंध रखने का कोई अधिकार नहीं है, ताइपे सरकार इसका कड़ा विरोध करती है.
इस सप्ताह 18 प्रशांत द्वीप देशों के नेताओं की बैठक में जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा पर चर्चा होने की उम्मीद है.
अमेरिकी उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल भी जा रहे हैं.
ताइवान और टोंगा के बीच 1972 से 1998 तक राजनयिक संबंध थे, जब देश ने बीजिंग को मान्यता दी और ताइपे के साथ संबंध तोड़ दिए.
अब केवल 12 देश ताइवान के साथ आधिकारिक राजनयिक संबंध रखते हैं.
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एएमजे/केआर