लड़कों के साथ की पढ़ाई, बनीं देश की पहली महिला सर्जन और विधायक, जानें कौन थीं मुथुलक्ष्मी रेड्डी?

नई दिल्ली, 30 जुलाई . 21वीं सदी में भले ही महिलाओं को उनके अधिकार आसानी से मिल जाते हों. लेकिन, एक दौर ऐसा भी था. जब महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाता था और उन्हें अपना हक पाने के लिए समाज के तानों को झेलना पड़ता था. 18वीं सदी में भारत में एक ऐसी ही महिला का जन्म हुआ. जिसने न सिर्फ समाज को बदलने का काम किया. बल्कि वे देश की पहली महिला विधायक और सर्जन भी बनीं.

हम बात कर रहे हैं डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की. देश की पहली महिला विधायक और सर्जन डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी की आज 138वीं जयंती है. उनका जन्म 1886 में तमिलनाडु (तब मद्रास) के पुडुकोट्टई में हुआ था. जब वह पैदा हुईं, तब देश में अंग्रेजों का राज था.

मुथुलक्ष्मी रेड्डी के पिता नारायण स्वामी अय्यर महाराजा कॉलेज में प्रिंसिपल थे और उनकी मां चंद्रामाई देवदासी समुदाय से थीं. मुथुलक्ष्मी रेड्डी को बचपन से ही पढ़ाई का शौक था. हालांकि, माता-पिता उनकी शादी कम उम्र में ही करना चाहते थे. लेकिन, उन्हें सिर्फ पढ़ाई करनी थी. उन्होंने अपने माता-पिता की बात का विरोध किया और उन्हें पढ़ाई के लिए राजी कर लिया.

पिता के प्रिंसिपल होने के बावजूद उन्हें शिक्षा हासिल करने के लिए काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. मैट्रिक तक उनके पिता और कुछ शिक्षकों ने उन्हें घर पर ही पढ़ाया. बाद में मुथुलक्ष्मी ने तमिलनाडु के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया. लेकिन, उनके फॉर्म को इसलिए खारिज कर दिया गया, क्योंकि वह एक महिला थीं.

बताया जाता है कि उस समय कॉलेज में सिर्फ लड़के ही पढ़ाई करते थे. उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान आई चुनौतियों से पार पाया और बाद में मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया. वह मद्रास मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेने वाली पहली महिला छात्रा बनीं. यहीं उनकी एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू से भी मुलाकात हुई. इसके बाद वह इंग्लैंड गईं और आगे की पढ़ाई की.

वह 1912 में भारत की पहली महिला सर्जन बनीं. इसके बाद 1927 में वह भारत की पहली महिला विधायक चुनी गईं. इस दौरान उन्होंने मद्रास विधानसभा में लड़कियों की कम उम्र में होने वाली शादी के लिए नियम बनाएं. उन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ भी आवाज उठाई. देवदासी प्रथा को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई.

मुथुलक्ष्मी रेड्डी को महात्मा गांधी और सरोजिनी नायडू ने काफी प्रभावित किया. सरोजिनी नायडू से मुलाकात के बाद उन्होंने महिलाओं से जुड़ी बैठकों में हिस्सा लेना शुरू किया और उनके हित में कई महत्वपूर्ण काम किए. वह अनाथ बच्चों और लड़कियों के बारे में काफी चिंतित थीं. उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के लिए 1931 में अव्वाई होम की स्थापना की. हालांकि, उनको सबसे अधिक सदमा अपनी बहन की मौत का लगा. जिनका कैंसर के कारण निधन हो गया.

उस हादसे ने मुथुलक्ष्मी को तोड़ा नहीं बल्कि उन्होंने एक मिशन बना लिया. और इस जानलेवा बीमारी से पीड़ित लोगों के इलाज के लिए साल 1954 में कैंसर इंस्टिट्यूट की नींव रखी. इस इंस्टिट्यूट में हर साल 80 हजार से अधिक मरीजों का इलाज होता है.

साल 1956 में सामाजिक कामों के लिए उन्हें पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया. साल 1968 में डॉ. मुथुलक्ष्मी रेड्डी ने 81 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह दिया.

एफएम/केआर