न्याय व्यवस्था को सुलभ, जवाबदेह बनाने के साथ भरोसा बढ़ाने वाले हैं नए आपराधिक कानून

भोपाल, 17 मई . देश में तीन नए आपराधिक कानून अमल में लाए जा रहे हैं. यह कानून न्याय व्यवस्था को सुलभ, जवाबदेह बनाने के साथ भरोसा बढ़ाने वाले हैं.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में पीआईबी द्वारा इन नए कानूनों पर आयोजित कार्यशाला ‘वार्तालाप’ को संबोधित करते हुए भोपाल जोन एक की पुलिस उपायुक्त प्रियंक शुक्ला ने कहा, “भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, जवाबदेह, भरोसेमंद और न्याय प्रेरित बनाने के प्रयास हैं. ये कानून एक जुलाई 2024 से प्रभावी होंगे.”

उन्होंने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई तरीकों से व्यवस्था की गई है. 30 से अधिक ऐसे प्रावधान हैं, जो पीड़ितों के अधिकारों को प्रभावी ढंग से प्राथमिकता देते हुए उनकी रक्षा करते हैं.

पुलिस उपायुक्त शुक्ला ने कहा कि पहले चार्जशीट की प्रति सिर्फ आरोपी को दी जाती थी, अब पीड़ित को भी चार्जशीट की कॉपी मिलेगी. जांच में वैज्ञानिक तरीकों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है. सात वर्ष या इससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले सभी अपराधों में फॉरेंसिक अनिवार्य होगा. उन्होंने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की अन्य विशेषताओं पर भी विस्तार से प्रकाश डाला.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अतिरिक्त जिला अभियोजन अधिकारी प्रियंका उपाध्याय ने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का मकसद सजा देने की बजाय न्याय देना है. इन कानूनों का प्रयास तय समय पर न्याय दिलाना है. भारतीय न्याय संहिता में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ अपराध पर एक नया अध्याय समाहित किया गया है. इन कानूनों में टेक्नोलॉजी के उपयोग पर ज्यादा बल दिया गया है. इलेक्ट्रॉनिक व डिजिटल साक्ष्य अब साक्ष्य के अन्य रूपों के समान गिने जाएंगे. इन कानूनों में पीड़ितों को सशक्त बनाने के लिए बहुत सारे प्रावधान किए गए हैं.

पीआईबी, भोपाल के अपर महानिदेशक प्रशांत पाठराबे ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के 25 दिसंबर 2023 को कानून बनने के साथ ही भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में एक नये युग की शुरुआत हुई है.

कार्यशाला को संबोधित करते हुए पीआईबी, भोपाल के उप निदेशक डॉ. सत्येन्द्र शरण ने कहा कि नए कानूनों के लागू होने के साथ कोई व्यक्ति ईएफआईआर या किसी भी पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज करा सकता है, भले ही थाने का कार्य क्षेत्र कुछ भी हो. साथ ही प्राथमिकी की प्रति इलेक्ट्रोनिक तरीके से प्राप्त की जा सकती है. जांच में प्रगति के बारे में पुलिस द्वारा 90 दिनों के भीतर सूचित करना जरूरी होगा.

एसएनपी/एबीएम