नई दिल्ली, 3 मई . एक सुरक्षा विशेषज्ञ ने कहा है कि इजराइल ने राजीव गांधी की हत्या से पहले संभावित खतरे के बारे में भारत को आगाह किया था और संभावित खतरे के बारे में जानकारी साझा की थी. यह जानकारी 1991 में शीर्ष कांग्रेस नेता की हत्या के बाद गायब हो गई. ये बेहद महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी थी, जिसे नष्ट कर दिया गया.
ये बात सिक्योरिटी एक्सपर्ट नमित वर्मा ने कही है जो ‘इंटेलिजेंस कोऑपरेशन एंड सिक्योरिटी चैलेंजेज इन द इमर्जिंग वर्ल्ड ऑर्डर’ पर चर्चा कर रहे थे, जिसे उसनस ने आयोजित किया था.
“हालिया इतिहास में पिछले तीन-चार दशकों में, इजराइल ने हमारे साथ जो सबसे महत्वपूर्ण जानकारी साझा की वह दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संभावित खतरे से संबंधित कुछ प्रतिलेख थे. आखिरकार, वैसा ही हुआ, हालांकि घटनाक्रम के बाद राजनीतिक परिस्थिति काफी बदल गई.
“सभी देशों को रोजाना एक-दूसरे के साथ काम करना पड़ता है. ऐसा हुआ कि खुफिया जानकारी या तो गलत जगह चली गई, या फिर इसे फेंक दिया गया.”
कार्यक्रम के मेजबान और उसनस के संस्थापक अभिनव पांड्या के अनुसार, वर्मा दशकों से “सुरक्षा मामलों में वैश्विक भू-राजनीति के विशेषज्ञ” रहे हैं. उन्होंने “सुरक्षा और विदेश नीति के विभिन्न महत्वपूर्ण मामलों पर सरकार के साथ मिलकर काम किया है”.
“भारत में, हमने अन्य फाइलों के साथ पत्राचार के आधार पर सामग्री का पुनर्निर्माण किया. हमने प्रतिलेख की एक और प्रति मांगी, लेकिन इज़राइल ने इसे उपलब्ध नहीं कराया. राष्ट्रों के बीच खुफिया जानकारी साझा करने में राजनीति कैसे चलती है, इसका इससे अधिक स्पष्ट उदाहरण नहीं हो सकता.”
उन्होंने चर्चा के दौरान उल्लेख किया, “उस समय, भारत महत्वपूर्ण देश था, सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ था और अमेरिका और सोवियत संघ के बीच भारत एक बैकचैनल था. राजीव गांधी उस संचार का हिस्सा थे.” इस चर्चा में दो इजरायली सुरक्षाकर्मी भी शामिल हुए.
वर्मा ने कहा कि जब भी वैश्विक समीकरण बदलते हैं या मौजूदा व्यवस्था को चुनौती दी जाती है तो ऐसी घटनाएं हुई हैं.
विशेषज्ञ ने बताया, “इस प्रतिलेख में साफ कहा गया कि भुगतान किया गया था… एक ‘गॉडमैन’ ने भुगतान किया है… इससे अधिक स्पष्ट और क्या हो सकता है… बैकचैनल पर. ये सारी जानकारी प्रलेखित की गई थी और हमारी खुफिया एजेंसियों को इसके बारे में पता है. उन्होंने सुरक्षा प्रदान करने के लिए कहा जो उस समय की सरकार ने नहीं की.”
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