ओरछा, 17 अप्रैल . बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा. यहां राम भगवान नहीं बल्कि राजा के तौर पर पूजे जाते हैं. उन्हें नियमित तौर पर पुलिस जवानों द्वारा सलामी दी जाती है और इस नगरी की चारदीवारी में कोई भी विशिष्ट व्यक्ति बत्ती वाली गाड़ी में नहीं आता.
मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में आने वाली यह धार्मिक नगरी बेतवा नदी के तट पर बसी है. यह बुंदेला राज परिवार की रियासत भी रही है.
ओरछा में भगवान राम के राजा बनने की रोचक कहानी है. कहा जाता है कि बुंदेला राज परिवार के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी धर्मपत्नी कुंवर गणेश राम भक्त. दोनों में अपने-अपने आराध्य को लेकर एक बार विवाद हो गया. मधुकर शाह ने अपनी पत्नी कुंवर गणेश से कहा कि अगर वाकई में तुम्हारे आराध्य राम हैं तो उन्हें अपने साथ लेकर ओरछा आओ. पति की चुनौती को कुंवर गणेश ने स्वीकारा और वह अयोध्या की ओर चल पड़ीं.
मान्यता है कि कुंवर गणेश अयोध्या पहुंचीं और उन्होंने वहां तप किया. उन्होंने रामजी से अपने साथ ओरछा चलने का आग्रह किया. जब उन्हें अपने इस प्रयास में सफलता नहीं मिली तो वे आत्महत्या करने के मकसद से सरयू नदी में कूद गईं. तभी, उनकी साड़ी के पल्लू में रामजी की प्रतिमा आ गई और उन्होंने कुंवर गणेश के सामने कुछ शर्तें रखी.
कहा जाता है कि कुंवर गणेश से राम जी ने कहा कि वह उन्हें पैदल मार्ग से ओरछा लेकर जाएं और सिर्फ उसी दिन ही पैदल चलें, जिस दिन पुष्य नक्षत्र होगा. इतना ही नहीं, वे ओरछा के राजा होंगे और एक बार जहां उन्हें बिठा दिया जाएगा, वहां से भी नहीं हटेंगे. रानी ने सभी शर्तों को मान लिया और रामजी को लेकर ओरछा की ओर चल पड़ी.
कहा जाता है कि कुंवर गणेश जब अयोध्या से चलीं तो ओरछा में मंदिर बनाए जाने का सिलसिला शुरू हो गया. जब वे रामजी को लेकर ओरछा पहुंचीं तो मंदिर निर्माण का काम अधूरा था. इस स्थिति में रामजी को राज परिवार की रसोई में बिठा दिया गया और वर्तमान में भी वे इस स्थान पर विराजमान हैं.
कुंवर गणेश के वक्त तय हुई शर्तों के मुताबिक आज भी राम राजा को नियमित रूप से सलामी दी जाती है. ओरछा की चारदीवारी के भीतर न तो किसी राजनेता को सलामी दी जाती है और न ही कोई व्यक्ति बत्ती वाली गाड़ी में आता है.
–आईएएनस
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