बिहार : राजनीति की अंतिम पारी में हार का सिलसिला तोड़ पाएंगे मांझी?

गया, 28 मार्च . बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के संरक्षक जीतन राम मांझी गुरुवार को गया से एनडीए प्रत्याशी के रूप में नामांकन भरकर चुनावी समर में कूद गए. उनका मुख्य मुकाबला महागठबंधन के प्रत्याशी राजद के नेता और बिहार के पूर्व मंत्री कुमार सर्वजीत से माना जा रहा है.

वैसे, मांझी इससे पहले भी लोकसभा चुनाव में भाग्य आजमा चुके हैं, लेकिन उनके लोकसभा पहुंचने की हसरत अब तक पूरी नहीं हुई है. एक बार फिर वह संसद के लिए भाग्य आजमाने उतरे हैं.

वैसे, देखा जाए तो ‘मोक्ष की धरती’ बिहार के गया संसदीय क्षेत्र में पिछले पांच चुनावों से किसी न किसी दल के ‘मांझी’ ही चुनावी नाव पार करते रहे हैं.

वर्ष 2019 के चुनाव में यहां से जदयू के विजय मांझी विजय हुए थे तो 2009 और 2014 के चुनाव में भाजपा के हरि मांझी ने विजय का परचम लहराया था. उससे पहले 2004 में इस क्षेत्र से राजद के राजेश कुमार मांझी ने जीत का सेहरा पहना था जबकि 1999 में भाजपा के रामजी मांझी इस क्षेत्र से लोकसभा पहुंचे थे.

लेकिन, जीतन राम मांझी के लिए लोकसभा चुनाव का अनुभव अब तक सुखद नहीं रहा है.

जीतन राम मांझी ने गया से वर्ष 1991 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था. वर्ष 2014 में उन्होंने एकबार फिर लोकसभा जाने का सपना संजोए जदयू के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें तीसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा.

मांझी ने इसके बावजूद संसद जाने का सपना नहीं छोड़ा और 2019 में बतौर महागठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनावी मैदान में उतरे. इस बार भी उन्हें सफ़लता नहीं मिल सकी.

माना जाता है कि मांझी अब राजनीति की अंतिम पारी खेल रहे हैं और इस बार वे बतौर एनडीए प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में उतरे हैं. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि गया के मतदाता मांझी का लोकसभा जाने का सपना पूरा करते है या नहीं.

एमएनपी/एकेजे