जानिए कैसे नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड ने बदल दी तमिलनाडु की एक युवा लड़की की जिंदगी

नई दिल्ली, 11 मार्च . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (8 फरवरी) को पहले नेशनल क्रिएटर्स अवॉर्ड से कई युवा हस्तियों को सम्मानित किया. भारत मंडपम में आयोजित इस कार्यक्रम में पीएम मोदी ने ‘बेस्ट स्टोरीटेलर कैटेगरी’ में कीर्तिका गोविंदासामी को सम्मानित किया. कीर्तिका गोविंदासामी जब मंच पर अवॉर्ड लेने पहुंची तो कुछ ऐसा हुआ कि पीएम मोदी भी भावुक हो गए.

दरअसल, मंच पर पहुंची कीर्तिका पीएम मोदी के पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाह रही थी, लेकिन पीएम ने प्यार से उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया और खुद गोविंदासामी को नमन करने लगे. दरअसल, उसी कीर्तिका गोविंदासामी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने जीवन की एक पूरी कहानी शेयर की है और बताया है कि यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें कितने संघर्षों का सामना करना पड़ा.

कीर्तिका गोविंदासामी ने लिखा है कि मैं तब 15 साल की थी, एक रात मैंने अपने पिता को रोते हुए सुना क्योंकि गांव के लोग मेरे बारे में बुरा-भला कह रहे थे. जीवन भर वे मुझ पर शर्मिंदा रहे.

कार्तिका ने आगे लिखा कि नहीं, मेरा कोई बॉयफ्रेंड नहीं था. मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी. फिर क्या गलत हुआ? मैं बस चीजें अपने आप करना चाहती थी. मैं अपने परिवार के पुरुषों पर निर्भर नहीं रहना चाहती थी.

कीर्तिका ने आगे लिखा है कि तुम्हें पता है हम लड़कियों को पास की दुकान में जाने की इजाजत नहीं थी. अगर मुझे किसी चीज की जरूरत होती तो मुझे अपने भाइयों से साथ चलने की भीख मांगनी पड़ती थी. एक बार मैं उस दुकान पर गई जो सचमुच घर से 100 मीटर दूर थी और इसके लिए मुझे मार पड़ी. ऐसे में बुनियादी चीजों के लिए भी मुझे जीवन भर संघर्ष करना पड़ा. मैं अपने जीवन में केवल एक पुरातत्ववेत्ता बनना चाहती थी. इसलिए मैंने स्नातक के लिए इतिहास को चुना, ताकि मैं पुरातत्व में स्नातकोत्तर कर सकूं. लेकिन एक बार जब मैं स्नातक उत्तीर्ण हो गई, तो घर वालों ने कहा कि शादी कर लो. मुझे आज भी याद है कि मैं उस दिन किस तरह बेबस थी और रो रही थी. फिर मेरे सामने जो भी काम आया, वह करना शुरू कर दिया. मैंने ट्यूशन पढ़ाया, होम ट्यूशन पढ़ाने भी जाने लगी, रिसेप्शनिस्ट की नौकरी तक की. यहां तक कि इलेक्ट्रीशियन के रूप में भी काम किया. इसके बाद भी पुराना लैपटॉप खरीदने में मुझे लगभग 1.5 साल लग गए.

कीर्तिका ने कहा, मुझसे मेरे परिवार वाले कितने खफा थे, इसका प्रमाण बता दूं कि मैं और मेरे पापा पूरे 6 साल तक बात नहीं कर रहे थे. वे मुझसे बहुत निराश थे. हालांकि मेरे माता-पिता ने मेरे लिए अपना सर्वश्रेष्ठ दिया. लेकिन, गांव है यहां सिर्फ आपके माता-पिता ही आपके लिए निर्णय नहीं लेते. रिश्तेदार भी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. लेकिन, मैं सचमुच एक सख्त बच्ची थी. अब 2024 में मैंने पहली बार अपने माता-पिता को हवाई जहाज पर बिठाया और उन्होंने मुझे हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुझे ये पुरस्कार प्राप्त करते देखा. मैं इस भावना को बयां नहीं सकती. जब मैंने उन्हें देखा तो वह खुशी से पागल हो रहे थे. मैं तभी जिंदगी में जीत गई.

कीर्तिका गोविंदासामी ने आगे लिखा कि आशा है कि आने वाली पीढ़ियों की लड़कियों के लिए रास्ता कम कांटों से भरा होगा. आशा है कि उन्हें एहसास होगा कि आपकी लड़की को शिक्षित करने का मतलब यह नहीं है कि वह किसी के साथ भाग जाएगी. उन्हें पढ़ने दीजिए, उन्हें जीवन जीने दीजिए.

जीकेटी/