ईटानगर, 9 मार्च . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को अरुणाचल प्रदेश में 825 करोड़ रुपये की लागत से बनी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सेला सुरंग राष्ट्र को समर्पित की. यह 13 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी दो लेन वाली सुरंग है.
यह सुरंग भारत की सुरक्षा को मजबूत करेगी और जरूरत पड़ने पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सशस्त्र बलों की पहुंच को आसान बनाएगी.
सुरंग को राष्ट्र को समर्पित करने के बाद, पीएम ने लोगों से इसे देखने और क्षेत्र में व्यापार व पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद का आग्रह किया.
पीएम ने कहा, “सेला सुरंग पहले ही बन जानी चाहिए थी, लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया.” इस मौके पर पीएम ने तवांग से दो बसों को हरी झंडी भी दिखाई.
प्रधानमंत्री ने सीमा क्षेत्र को अंतिम मील तक कनेक्टिविटी प्रदान करने और अत्यंत कठिन परिस्थितियों में ऐसे दुर्गम इलाके में इंजीनियरिंग के चमत्कार के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के प्रयासों की सराहना की.
सेला सुरंग के अलावा, पीएम ने ईटानगर से 123 प्रमुख विकास परियोजनाओं का भी उद्घाटन किया. उन्होंने मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में 55 हजार 600 करोड़ रुपये की 95 परियोजनाओं की नींव रखी.
एक अधिकारी ने कहा कि सुरंग के खुलने से असम के तेजपुर को तवांग से जोड़ने वाली सड़क पर हर मौसम में आवागमन संभव हो सकेगा.
सेला-चारबेला रिज से होकर गुजरने वाली और न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (एनएटीएम) से निर्मित यह सुरंग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर दुनिया की सबसे लंबी दे लेन की सुरंग है.
गौरतलब हैै कि एनएटीएम का उपयोग विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र में सुरंगों के निर्माण में किया जाता है.
यह सुरंग बालीपारा-चारद्वार-तवांग रोड पर तवांग क्षेत्र को जोड़ने वाली एक महत्वपूर्ण धुरी है. यह तेजपुर तक भीतरी इलाकों को कनेक्टिविटी प्रदान करती है.
सड़क पर नेचिपु, बोमडिला टाउन और सेला दर्रा जैसी कई बाधाएं थीं, जिन्हें बीआरओ ने सेला और नेचिपु सुरंगों और बोमडिला बाईपास का निर्माण कर हल किया.
सेला सुरंग की आधारशिला 9 फरवरी, 2019 को पीएम ने ही रखी थी और इसका निर्माण दो महीने के भीतर शुरू हो गया था.
दुर्गम इलाके और प्रतिकूल मौसम की चुनौतियों को पार करते हुए सुरंग का निर्माण केवल पांच वर्षों में पूरा कर लिया गया.
इस सुरंग में क्रमशः 1,003 मीटर और 1,595 मीटर लंबी दो सुरंगें हैं. इनमें 8.6 किमी की पहुंच और लिंक सड़कें हैं, जिनका निर्माण 825 करोड़ रुपये की लागत से किया गया है.
अधिकारियों ने कहा कि दूसरी सुरंग में अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार मुख्य सुरंग से सटी एक एस्केप ट्यूब भी है.
मुख्य ट्यूब के समानांतर बनी एस्केप ट्यूब हर 500 मीटर के बाद क्रॉस पैसेज से जुड़ी है और आपातकालीन स्थिति में इस एस्केप ट्यूब का उपयोग बचाव वाहनों की आवाजाही और फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए किया जा सकता है.
सुरंग को 80 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति के साथ प्रति दिन तीन हजार कारों और दो हजार ट्रकों के आने-जाने के लिए डिजाइन किया गया है.
यह सुरंग न केवल सैनिकों और आपूर्ति की सुचारू आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगी और क्षेत्र में रक्षा क्षमताओं को मजबूत करेगी, बल्कि यह तवांग क्षेत्र के लिए आर्थिक समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत भी करेगी. इससे व्यापार, पर्यटन, रोजगार, शिक्षा और समग्र विकास को बढ़ावा मिलेगा.
अधिकारियों ने कहा कि पहले सेला दर्रे के मार्ग में केवल सिंगल लेन कनेक्टिविटी और खतरनाक मोड़ थे. इसके कारण भारी वाहन, कंटेनर ट्रक और ट्रेलर तवांग नहीं जा पाते थे.
अधिकारियों के अनुसार, प्रतिकूल मौसम, विशेष रूप से सर्दियों में, मौजूदा सेला दर्रे से मरीजों को आने-जाने में कठिनाई होती थी. इस सुरंग के खुलने से यह अब अतीत की बात हो जाएगी.
सुरंग के खुलने से आठ किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी और यात्रा का समय भी एक घंटे कम हो जाएगा.
इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पूरा करने में पांच वर्षों तक प्रतिदिन औसतन लगभग 650 कर्मियों और मजदूरों ने काम किया.
इसके निर्माण में 71 हजार मीट्रिक टन सीमेंट, 5 हजार मीट्रिक टन स्टील और 800 मीट्रिक टन विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया.
सुरंग के निर्माण के दौरान बीआरओ को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा. ठंड व बर्फ के कारण कंक्रीटिंग प्रक्रिया में देरी हुई. निर्माण के दौरान सुरंग में पानी भी प्रवेश कर जाता था.
लेकिन इन चुनौतियों के बावजूद, टेक्नोलॉजी के कुशल उपयोग, अधिकारियों के अनुभव और श्रमिकों की कड़ी मेहनत के कारण पांच साल से भी कम समय में बीआरओ सुरंग का निर्माण पूरा कर सका.
सुरंग में अत्याधुनिक सुरक्षा व्यवस्था हैं. इसमें हवा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए वेंटिलेशन सिस्टम और विश्व स्तरीय इलेक्ट्रो मैकेनिकल सिस्टम है. इसमेें जेट फैन वेंटिलेशन सिस्टम, अग्निशमन उपकरण, सीआईई मानदंड-आधारित रोशनी प्रणाली और एससीएडीए नियंत्रित निगरानी प्रणाली शामिल हैं.
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