लखनऊ, 4 मार्च . लोकसभा चुनाव में यूपी के लिए भाजपा ने अपने 51 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. इंडिया गठबंधन में शामिल सपा ने भी दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. लेकिन अभी तक कांग्रेस की तरफ से कोई घोषणा नहीं हुई है. अमेठी से भाजपा की तरफ से स्मृति ईरानी मैदान में हैं. वहीं कांग्रेस की तरफ से रायबरेली और अमेठी में गांधी परिवार से उम्मीदवार उतारे जाने पर संशय बरकार है.
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि सपा के साथ भले ही कांग्रेस का गठबंधन हो गया हो लेकिन अभी कुछ ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस उम्मीदवार तय नहीं कर पा रही है. उसका कारण है कि दो तीन ऐसी सीटें हैं जहां पर अभी सपा से सहमति नहीं बन पा रही है. इसी उधेड़बुन में कांग्रेस की सूची अटकी पड़ी है.
अमेठी और रायबरेली पर शीर्ष नेतृत्व को फैसला लेना है. लेकिन इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. कुछ कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वह मुरादाबाद और लखीमपुर खीरी जैसी सीटें मांग रहे थे, लेकिन इसके बदले उन्हें बुलंदशहर, गाजियाबाद और सीतापुर दे दी गईं.
यूपी कांग्रेस ने अभी तक अपनी राज्य चुनाव समिति का गठन भी नहीं किया है, जो संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करती है और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की केंद्रीय चुनाव समिति (सीइसी) को उम्मीदवारों की एक सूची भेजती है.
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए यूपी काफी महत्वपूर्ण राज्य है. भाजपा का हर दिन किसी न किसी जिले में बड़ा नेता किसी अभियान के तहत जाता है, जबकि विपक्ष की तरफ से कांग्रेस अभी अपने उम्मीदवार का चयन ही नहीं कर पाई है. देरी की मुख्य वजह कांग्रेस का संगठन है जो यूपी में मजबूत नहीं है और यह लोग सपा के भरोसे हैं. पूर्व सांसद राज बब्बर जैसे कांग्रेस के कुछ प्रमुख चेहरों ने इस बार चुनाव लड़ने के लिए कोई रुझान नहीं दिखाया है. रायबरेली में सोनिया के चुनाव न लड़ने के एलान के बाद से ही कोई हलचल नहीं है. वहीं अमेठी में राहुल गांधी चुनाव लडेंगे या नहीं इस पर भी कुछ तय नहीं है.
उधर, अमेठी में स्मृति ईरानी लगातार सक्रिय हैं. उन्होंने अपना घर अमेठी में बनाकर एक संदेश देने का काम किया है. वह लगातार जनसंपर्क कर रही हैं. कई गावों और ब्लाकों में जाकर तेज गति से प्रचार कर रही हैं. रायबरेली में कांग्रेस के उम्मीदवार तय होने के बाद अपने पत्ते खोलेगी क्योंकि इस बार भाजपा सोनिया गांधी के न लड़ने का फायदा उठाने के फिराक हैं.
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