नई दिल्ली, 20 फरवरी . दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 की कई धाराओं को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है.
इसमें पुनर्वास के लिए आदेश देने की भी मांग की गई है. सीवर और सेप्टिक टैंक सफाईकर्मियों को अधिनियम के तहत मैनुअल स्कैवेंजरों द्वारा प्राप्त सभी लाभ प्रदान करना है.
जनहित याचिका में जोखिम वाले सीवर की सफाई करने वाले सफाईकर्मियों को अधिनियम के दायरे से बाहर करने की वैधता को चुनौती दी गई है और कानून के तहत उनके पुनर्वास और सुरक्षा की मांग की गई है.
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने केंद्र, सामाजिक न्याय, अधिकारिता मंत्रालय और दिल्ली सरकार को आठ सप्ताह के भीतर जनहित याचिका पर जवाब देने का आदेश दिया है.
जनहित याचिका एक सेप्टिक टैंक क्लीनर और एक दिहाड़ी मजदूर ने दायर की थी, जिसके भाई की 2017 में दिल्ली के लाजपत नगर में सीवर सफाई करते समय दुखद मौत हो गई थी.
यह भारत के संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का हवाला देते हुए, 2013 अधिनियम की कुछ धाराओं और उससे जुड़े नियमों को हटाने की मांग करती है.
याचिका में तर्क दिया गया है कि अधिनियम से सीवर और सेप्टिक टैंक क्लीनर को बाहर करना मनमाना और भेदभावपूर्ण है, जो उन्हें पहचान और पुनर्वास लाभों से वंचित करता है.
इसके अलावा, याचिका में सुरक्षात्मक गियर के प्रावधान के आधार पर मैनुअल स्कैवेंजर्स के वर्गीकरण को चुनौती दी गई है. इसे आर्टिफिशियल भेद पैदा करना और खतरनाक सफाई कार्यों में समान रूप से लगे लोगों को उचित लाभ से वंचित करना माना जाता है.
इसके अलावा, याचिका में दैनिक वेतन भोगी मजदूरों या अस्थायी श्रमिकों के रूप में कार्यरत व्यक्तियों को मान्यता देने में अधिनियम की सीमाओं का विरोध किया गया है, जिसमें मैनुअल स्कैवेंजिंग के मुद्दे को लेकर अधिक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. मामले की अगली सुनवाई 4 जुलाई को होगी.
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एफजेड/एबीएम