नई दिल्ली, 13 फरवरी . दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि नगर निगम अधिकारियों से राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों और नगर निगम क्षेत्रों से मवेशियों, बंदरों और कुत्तों सहित सभी आवारा जानवरों को पूरी तरह से खत्म करने की उम्मीद नहीं की जाती है.
न्यायमूर्ति सी हरि शंकर आवारा पशु प्रबंधन के संबंध में 2019 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) में जारी निर्देशों का अनुपालन न करने का आरोप पर अदालत की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहे थे.
न्यायाधीश ने कहा कि अधिकारियों का कर्तव्य ऐसे जानवरों के पुनर्वास के लिए ठोस प्रयास करना और उन्हें लोगों और यातायात के लिए खतरा बनने से रोकना है.
अवमानना मामले में प्रस्तुत स्थिति रिपोर्ट की जांच करने पर, अदालत ने कहा कि दिल्ली में कोविड के बाद अनुमानित मवेशियों की आबादी लगभग 8,367 है, शहर की चार गौशालाओं में परित्यक्त मवेशियों को रखने के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध है.
आवारा जानवरों की समस्या के समाधान के लिए अधिकारियों द्वारा उठाए गए कदमों को स्वीकार करते हुए, अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि ये प्रयास पिछले आदेश में जारी निर्देशों का काफी हद तक अनुपालन करते हैं.
इसमें कहा गया है कि निर्देशों को सार्थक तरीके से समझा जाना चाहिए, यह मानते हुए कि आवारा जानवरों का पूर्ण उन्मूलन संभव या अपेक्षित नहीं है.
अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देशों की कोई अवज्ञा नहीं हुई.
इसमें कहा गया है कि यदि याचिकाकर्ता उठाए गए कदमों से असंतुष्ट है, तो वे अपनी शिकायतों के समाधान के लिए उचित कानूनी रास्ता अपना सकते हैं.
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