लखनऊ, 8 फरवरी . राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और भाजपा के बीच गठबंधन को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है. हालांकि रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह ने इस पर स्थिति साफ नहीं की है. राजनीतिक जानकर बताते हैं कि रालोद अपने नफा-नुकसान का आकलन करने के बाद ही तस्वीर साफ करेगा.
सीटों के बंटवारे और प्रत्याशियों के चयन पर सपा के साथ बात बिगड़ जाने के बाद रालोद की एनडीए में जाने की चर्चा ने जोर पकड़ा है. इस समय पश्चिमी यूपी में जयंत की पकड़ कुछ सीटों पर ठीक-ठाक मानी जाती है. उन्होंने जाट-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को भी अच्छे से बना रखा है, इसलिए, वे जिस भी गठबंधन में जायेंगे, उसका पड़ला भारी रहने का अनुमान है.
पश्चिमी यूपी की बागपत, कैराना, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बिजनौर, नोएडा, अमरोहा, मुरादाबाद, संभल, पीलीभीत, बरेली, आंवला, बदांयू, मथुरा, फतेहपुर सीकरी, फिरोजाबाद, आगरा, अलीगढ़, हाथरस सीटों पर जाट वोटर हैं. इनमें अधिकतर सीटों पर जाट वोट चुनाव को प्रभावित कर सकता है.
ऐसे में जयंत अगर एनडीए के साथ जाते हैं तो सपा व कांग्रेस को चुनावी गणित गड़बड़ाने की चिंता हो गई है. इसलिए अब वह भी जयंत को मनाने में जुट गए हैं.
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि रालोद के मुखिया जयंत चौधरी बहुत पढ़े लिखे और सुलझे इंसान हैं. वह राजनीति को समझते हैं. मुझे उम्मीद है कि किसानों की लड़ाई के लिए जो संघर्ष चल रहा है, वे उसे कमज़ोर नहीं होने देंगे.
इससे पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव शिवपाल यादव ने कहा था कि मैं जयंत को बहुत अच्छी तरह से जानता हूं. वे धर्मनिरपेक्ष हैं. भाजपा केवल मीडिया का इस्तेमाल कर गुमराह कर रही है. वह इंडिया गठबंधन में रहकर भाजपा को हराएंगे.
वहीं सपा मुखिया के बयान के जवाब में रालोद पार्टी के एक्स अकाउंट से एक पोस्ट साझा की गई, जिसमें लिखा है कि हमारे किसान भोले जरूर हैं पर मूर्ख नहीं. वे बहुत समझदार हैं और सशक्त हैं. रालोद के विधायक भी 11 फरवरी को अयोध्या दर्शन पर भी जा रहे हैं. यह सब एक अलग प्रकार के संकेत दे रहे हैं.
रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय कहते हैं कि लोकसभा चुनाव हैं, तरह तरह की बातें होती रहती हैं. जब तक कि ठोस निर्णय न हो जाए तो कुछ बोलना ठीक नहीं.
वरिष्ठ राजनीतिक प्रसून पांडेय कहते हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिमी यूपी की राजनीति की धुरी चौधरी जयंत सिंह बन गए हैं. वो अपना नफा नुकसान देखने में जुटे हैं. सपा के साथ जाने में उनका ज्यादा फायदा नहीं है. वहीं भाजपा के साथ लड़ने पर केंद्र और राज्य दोनों जगह हिस्सेदारी का अवसर मिल सकता है. जयंत को पता है कि उन्हें राजग के साथ जाने में ज्यादा बेनिफिट है. इसीलिए उन्होंने सारे दरवाजे खुले रखे हैं. वह किसी तरह की बयानबाजी से बच रहे हैं. एनडीए के साथ बातचीत शुरू होने के बाद हर किसी की नजर उन पर ही टिकी है कि उनका अंतिम फैसला क्या होता है. क्योंकि पश्चिम की अधिकतर सीटों पर जाट वोटर चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं.
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