अंग्रेजों से भिड़ने के बाद नाम से जुड़ा ‘आजाद’, स्वतंत्रता संग्राम से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक सफर ऐसा रहा

New Delhi, 27 नवंबर . 1942 का दौर था, जब ‘India छोड़ो’ आंदोलन पूरे देश में लहर की तरह फैल चुका था. जोश से भरे युवा क्रांतिकारी आजादी के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार थे. ठीक उसी तरह बिहार का एक युवा उसी आंदोलन की राह पर निकल चुका था, जिनका नाम था भागवत झा आजाद. उनके नाम में ‘आजाद’ जुड़ने की कहानी भी उसी संघर्ष का एक हिस्सा रही है.

28 नवंबर 1922 को बिहार के गोड्डा जिले के महगामा इलाके के कसबा गांव में जन्मे भागवत झा जब टीएनबी कॉलेज के छात्र हुआ करते थे. इसी दौरान भागलपुर के सुल्तानगंज इलाके में कुछ नौजवानों ने ब्रिटिश Government की एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई. असलहों से लदी एक ट्रेन दिल्ली से कोलकाता जा रही थी. योजना को सफल बनाने के लिए नौजवानों का जत्था मैदान में कूद चुका था, लेकिन ब्रिटिश Police को इसकी भनक लग गई.

Police की गोलीबारी में भागवत झा समेत कई छात्र घायल हो गए. जांघ में गोली लगने के बाद वे गिर पड़े. यह अफवाह फैल गई कि वे मर चुके हैं, लेकिन जब Police घायलों को गिरफ्तार कर अस्पताल भेजने की तैयारी कर रही थी, तभी भागवत को होश आ गया. कुछ साथियों की मदद से वे वहां से फरार हो गए. उनके कई साथी गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन वे ‘आजाद’ हो गए. यहीं से उनके नाम के साथ ‘आजाद’ शब्द जुड़ गया, जो उनके जीवन की सबसे बड़ी पहचान बना.

स्वतंत्रता संग्राम के इस महत्वपूर्ण क्षण से प्रेरित होकर, भागवत झा आजाद ने राजनीति में भी अपनी जगह बनाई. हालांकि, उन्होंने कभी Chief Minister बनने की चाहत नहीं रखी, लेकिन राजनीति ने उन्हें एक बेहतरीन नेता के रूप में स्वीकार किया. भागवत झा भागलपुर से छह बार सांसद रहे और Union Minister भी बने. 1988 से 1989 तक, वह अविभाजित बिहार के Chief Minister रहे, जहां उन्होंने अपनी ईमानदारी और साफ छवि से सबका दिल जीता. उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी स्पष्ट और दृढ़ नीति ने उन्हें बिहार में एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया. उनके समय में सत्ता का नशा नहीं, बल्कि जनता की भलाई थी.

उन्होंने न सिर्फ राज्य की राजनीति में, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी छाप छोड़ी. उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाए गए. वे Government की गलत नीतियों के खिलाफ आवाज उठाने से कभी पीछे नहीं हटे. उनके परिश्रम और नेतृत्व ने उन्हें आम जनता के बीच एक सशक्त नेता बना दिया.

हालांकि, भागवत झा आजाद की कुर्सी एक अपहरण कांड में चली गई. 17 दिसंबर 1988 को भागलपुर में एक सनसनीखेज घटना घटी. एनएसयूआई के जिला अध्यक्ष प्रवीण सिंह ने एक स्थानीय डॉक्टर की बेटी का अपहरण कर लिया. कहा गया कि प्रवीण सिंह ने लड़की को बंदूक के बल पर जबरन भगाया. इसके बाद भागलपुर के बंगाली और बाकी समाज के लोग इस घटना के खिलाफ उग्र हो गए. इसका एक कारण प्रवीण सिंह का Chief Minister भागवत झा के साथ करीबी होना था.

प्रवीण उस लड़की को लेकर गोड्डा जिले में Chief Minister के खास ओंकारनाथ राम के घर पहुंच गया था. इधर, भागलपुर में तीन दिन तक हड़ताल और विरोध प्रदर्शन होते रहे. लड़की भले ही परिवार को वापस सौंप दी गई थी, लेकिन इसका गहरा असर भागवत झा पर पड़ा. यह एक ऐसा घटनाक्रम था, जिसने भागवत झा की राजनीति को समेटकर रख दिया और धीरे-धीरे वे सियासत से गुम हो गए.

राजनीति के अलावा, भागवत झा ‘आजाद’ साहित्यिक दृष्टि से भी बहुत समृद्ध थे. उनकी लिखी हुई किताब ‘मृत्युंजयी’ जन संघर्ष, जीवन के मूल्य और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित थी. उन्होंने अपने विचारों और अनुभवों को शब्दों के रूप में कलम से कागजों पर उतारा, जिससे समाज के लोगों में जागरूकता और प्रेरणा का संचार हुआ. यह किताब न केवल Political दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के संघर्ष और जीवन में आस्था की एक मिसाल है.

डीसीएच/वीसी