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New Delhi, 27 नवंबर . विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उत्तर प्रदेश के Chief Minister से देश के Prime Minister जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पदों की जिम्मेदारी का निर्वहन किया. इस कार्यकाल में बोफोर्स घोटाले को उजागर करना और मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाना महत्वपूर्ण रहा. यही वजह रही कि वीपी सिंह को India में ‘मंडल के मसीहा’ और ‘भ्रष्टाचार-विरोधी नायक’ दोनों रूपों में आज भी याद किया जाता है.
सत्रह साल पहले आज ही के दिन India ने अपने ईमानदार प्रधानमंत्रियों में से एक को खो दिया था. विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह), जिन्हें लोग प्यार से ‘राजा साहब’ कहते थे, 27 नवंबर 2008 को 77 वर्ष की उम्र में कैंसर और किडनी फेलियर से जंग हार गए.
वीपी सिंह का जन्म 25 जून 1931 को इलाहाबाद के निकट दौलतपुर में मंदा की रियासत के राजा गोपाल शरण सिंह के घर पर हुआ था. उनकी पढ़ाई इलाहाबाद और पुणे विश्वविद्यालय में हुई. राजनीति में आने से पहले वे इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत भी कर चुके थे.
सिंह ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के Chief Minister से Union Minister और फिर Prime Minister तक का सफर तय किया. वे सर्वप्रथम कांग्रेस के टिकट पर 1969 में पहली बार विधायक बने. 1971 में सोरांव (इलाहाबाद) से सांसद चुने गए. 1980 में जब केंद्र में राजीव गांधी की Government थी, उस दौरान वे उत्तर प्रदेश के Chief Minister थे और 1984-87 में केंद्रीय वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री (राजीव मंत्रिमंडल) रहे. उन्होंने 2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990 तक India के 7वें Prime Minister (जनता दल) के रूप में जिम्मेदारी निभाई.
वीपी सिंह के कार्यकाल के प्रमुख फैसलों की बात करें तो उन्होंने ही सबसे पहले 1987 में स्वीडिश रेडियो के खुलासे को आधार बनाकर बोफोर्स में कमीशनखोरी का मुद्दा उठाया. राजीव गांधी से मतभेद इतने बढ़े कि उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. यही मुद्दा 1989 के Lok Sabha चुनाव में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण बना.
इसके अलावा मंडल कमीशन की सिफारिशों को वीपी सिंह के कार्यकाल में लागू किया गया. 7 अगस्त 1990 को वीपी सिंह ने संसद में घोषणा की कि Governmentी नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा. यह फैसला भारतीय समाज को दो हिस्सों में बांट गया. एक तरफ पिछड़े वर्ग ने उन्हें मसीहा माना, दूसरी तरफ ऊंची जातियों के युवाओं ने देशव्यापी आंदोलन छेड़ दिया. कई जगह आत्मदाह की घटनाएं हुईं. आखिरकार 10 नवंबर 1990 को भाजपा के समर्थन वापसी के बाद उनकी Government गिर गई.
Government जाने के बाद भी वीपी सिंह ने कभी सत्ता की लालच नहीं की. 1996 में उन्हें कैंसर का पता चला. उन्होंने इलाज कराया, लेकिन सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया. अपने अंतिम दिनों में वे इलाहाबाद और दिल्ली में रहते थे. 27 नवंबर 2008 को जब उनका निधन हुआ, तो न तो कोई राजकीय सम्मान था, न ही भव्य अंतिम यात्रा. सिर्फ कुछ कार्यकर्ता और परिवार वाले दिल्ली के निगमबोध घाट पर मौजूद थे, क्योंकि उनकी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार बिना किसी दिखावे के हो.
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एससीएच/जीकेटी